भारत में अंग्रेज़ो की भू-राजस्व नीतियां

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भारत में अंग्रेज़ो की भू-राजस्व नीतियां

  • admin
  • November 17, 2016


प्रस्तावना

यहाँ पर मैं ‘राजीव अहीर’ की पुस्तक’आधुनिक भारत का इतिहास’ से कुछ मुख्य बिंदु लिख रहा हूँ ताकि आप अपने दिमाग में एक खाँचा खींच सके|

भारत में अंग्रेज़ो की भू-राजस्व नीतियां
ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने आर्थिक व्यय की पूर्ति करने तथा अधिकाधिक धन कमाने के उद्देश्य से भारत की कृषि व्यवस्था में हस्तक्षेप करना प्रारम्भ किया था | कंपनी ने करो के उत्पादन और वसूली के लिए कई नए प्रकार के भू राजस्व बंदोबस्त प्रारम्भ किए |
मुख्य रूप से अंग्रेज़ो ने भारत में तीन प्रकार की भू -राजस्व पध्दतियां अपनाई–
जमींदारी ,रैयतवाड़ी,महालवाड़ी
जमींदारी प्रथा या स्थाई बंदोबस्त

  • गवर्नर जनरल लार्ड कार्नवालिस ,जॉन शोर तथा चार्ल्स ग्रांट की आपसी सहमति से 1790 में ज़मींदारों के साथ 10 वर्ष के लिए एक समझौता किया गया जिसे 22 मार्च 1993 को स्थायी कर दिया गया |इसे ही स्थायी बंदोबस्त कहा गया |
  • यह व्यवस्था बंगाल ,बिहार ,उड़ीसा , उत्तर प्रदेश के बनारस प्रखंड तथा उत्तरी कर्नाटक में लागू किया गया |इस व्यवस्था के तहत ब्रिटिश भारत के कुल क्षेत्रफल का लगभग 19 % भाग सम्मिलित हैं|
  • इस व्यवस्था की निम्न विशेषताएं थी —

  • ज़मींदारों को भूमि का स्थाई मालिक बना दिया गया | उन्हें उनकी भूमि से तब तक पृथक नही किया जा सकता था जब तक वे अपना निश्चित लगान सरकार को देते रहे |
  • किसानों को मात्र रैयत का निचा दर्ज़ा दिया गया तथा उनसे भूमि संबंधी तथा अन्य परंपरागत अधिकारों को छीन लिए गया |
  • जमींदार भूमि के मालिक होने के कारण भूमि को खरीद और बेंच सकते थे |
  • जमींदारों से लगान सदैव के लिए निश्चित कर दिया गया |
  • सरकार का किसानों से कोई प्रत्यक्ष संपर्क नही था |
  • जमींदारों को किसानों से वसूल की गई कुल भू -राजस्व का 10/11 भाग कंपनी को देना होता था ,तथा 1/11 भाग वह स्वयं रखता था |
  • यदि कोई ज़मींदार निश्चित तारीख को भू राजस्व की निर्धारित राशि जमा नही करता तो उसकी जमींदारी नीलाम कर दी जाती थी |
  • इससे कंपनी के आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई |
  • उद्देश्य–
    कंपनी द्वारा भू राजस्व के स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था को लागू करने के मुख्य दो उद्देश्य थे —

  • इंग्लैण्ड की तरह ,भारत में जमींदारों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना ,जो अंग्रेजी साम्राज्य के लिए सामाजिक आधार का कार्य कर सके |भारत में फैलते साम्राज्य को देखते हुए अंग्रेजों ने महसूस किया कि भारत जैसे विशाल देश पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए उनके पास एक ऐसा वर्ग होना चाहिए ,जो अंग्रेजी सत्ता को सामाजिक आधार प्रदान करें |इसीलिए अंग्रेजों ने ज़मींदारों का एक ऐसा वर्ग तैयार किया जो कंपनी की लूट खसोट से थोड़ा हिस्सा पाकर संतुष्ट हो जाए तथा कंपनी को सामाजिक आधार प्रदान करें |
  • कंपनी की आय में वृद्धि करना |
  • स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था के लाभ —
    ज़मींदारों को-

  • इस व्यवस्था से सर्वाधिक लाभ ज़मींदारों को हुआ |वे स्थायी रूप से भूमि के मालिक बन गए |
  • लगान की एक निश्चित राशि सरकार को देने के पश्चात काफी बड़ी राशि ज़मींदारों को प्राप्त होने लगी |
  • अधिक आय से जमींदार कालांतर में अधिक समृद्ध हो गए तथा वे सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे |बहुत से जमींदार गांव छोड़ कर शहर में बस गए |
  • सरकार को –

  • ज़मींदारों के रूप में सरकार को एक ऐसा वर्ग प्राप्त हो गया जो हर परिस्थिति में सरकार का साथ देने को तैयार था | ज़मींदारों के इस वर्ग ने अंग्रेजी सत्ता को एक सामाजिक आधार प्रदान किया तथा कई अवसरों पर ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध किए गए विद्रोह को कुचलने में सरकार की सहायता की |
  • सरकार के आय में अत्यधिक वृद्धि हो गई |सरकार की आय निश्चित हो गई जिससे अपना बजट तैयार करने में उसे आसानी हो गई |
  • सरकार को प्रतिवर्ष राजस्व की दरें तय करने एवं ठेके देने के झंझट से मुक्ति मिल गयी|
  • कंपनी के कर्मचारियों को लगान व्यवस्था से मुक्ति मिल गयी ,जिससे वे कंपनी के व्यापार की ओर अधिक ध्यान दे सके | उसके प्रशासनिक व्यय में भी कमी आयी और प्रशासनिक कुशलता बढ़ी |
  • अन्य को —

  • राजस्व में वृद्धि की संभावनों के कारण जमींदारों ने कृषि में स्थायी रूप से रूचि लेना प्रारम्भ कर दिया तथा कृषि उत्पादन में वृद्धि के अनेक उपाए किए जिससे कृषि की उत्पादकता में वृद्धि हुई |
  • कृषि में उन्नति होने से व्यापार एवं उद्योग में प्रगति हुई |
  • जमींदारों से न्याय एवं शांति स्थापित करने की जिम्मेदारी छीन ली गयी |जिससे उनका ध्यान मुख्यतः कृषि के विकास में लगा तथा इससे सूबों की आर्थिक सम्पन्नता में वृद्धि हुई |
  • सूबों की आर्थिक सम्पन्नता से सरकार को लाभ हुआ |


  • हानियां —

  • इस व्यवस्था में सबसे अधिक हानि किसानों को हुई इससे उन भूमि संबंधी तथा अन्य परंपरागत अधिकार छीन लिए गए तथा वे केवल खेतिहर मज़दूर बन कर रह गए |
  • किसानों को जमींदारों के अत्याचारों व शोषण का सामना करना पड़ा तथा वे पूर्णतया जमींदारों की दया पर निर्भर हो गए |
  • वे जमींदार ,जो राजस्व वसूली की उगाही में उदार थे , भू-राजस्व की उच्च दरें सरकार को समय पर नहीं अदा कर सके , उन्हें बेरहमी के साथ बेदखल कर दिया गया तथा उनकी जमींदारी की नीलामी कर दी गयी |
  • जमींदारों के समृद्ध होने से वे विलासतापूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे जिससे सामाजिक भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई |
  • स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था ने कालांतर में राष्ट्रीय स्वतंत्रता संघर्ष में भी हानि पहुँचाई |जमींदारों का यह वर्ग स्वतंत्रता संघर्ष में अंग्रेज़ भक्त बना रहा तथा कई अवसरों पर तो उसने राष्ट्रवादियों के विरुद्ध सरकार की मदद की |
  • इस व्यवस्था से किसान दिनोंदिन निर्धन होते गए तथा उनमे सरकार और जमींदारों के विरुद्ध असंतोष फैलने लगा |
  • इस व्यवस्था से सरकार को भी हानि हुई क्योंकि कृषि उत्पादन में वृद्धि के साथ साथ उनके आय में कोई वृद्धि नही हुई तथा संपूर्ण लाभ केवल ज़मींदारों को ही प्राप्त होता रहा |
  • इस प्रकार यह स्पस्ट है की स्थायी बंदोबस्त से सर्वाधिक लाभ जमींदारों को हुआ|यद्दपि सरकार की आय भी बढ़ी लेकिन अन्य दृष्टिकोण से इसमें लाभ के बजाए हानि अधिक हुई |
  • रैयतवाड़ी व्यवस्था

  • मद्रास के गवर्नर जनरल टॉमस मुनरो द्वारा 1920 में रैयतवाड़ी व्यवस्था को प्रारम्भ किया गया |
  • इस व्यवस्था को मद्रास ,बम्बई तथा असम के कुछ भागों में लागू किया गया |इसे लागू करने में बम्बई के गवर्नर एलफिन्सटन ने महत्वपूर्ण योगदान दिया |
  • इस व्यवस्था में किसानों को भूमि का स्वामी बना दिया गया |किसान व्यक्तिगत रूप से सरकार को लगान अदा कर सकते थे |
  • इस प्रणाली में भू राजस्व का निर्धारण भूमि के क्षेत्रफल के आधार पर किया जाता था |
  • इस व्यवस्था का उद्देश्य बिचौलिओं के वर्ग को समाप्त करना था | इस व्यवस्था के अन्तर्गत 51 % भूमि आई |
  • इस व्यवस्था का सबसे बड़ा नुकसान यह था कि लगान दर काफी अधिक थी (लगभग 50 %)और समय से लगान न देने पर किसानों कि जमीन छीन ली जाती थी |
  • महलवाड़ी पद्धति —

  • लार्ड हेस्टिंग्स के काल में ब्रिटिश सरकार ने भू राजस्व कि वसूली के लिए भू राजस्व व्यवस्था का संसोधित रूप लागू किया ,जिसे महलवाड़ी बंदोबस्त कहा गया |यह व्यवस्था मध्य प्रान्त ,पंजाब एवं आगरा में लागू की गयी |इस व्यवस्था के अन्तर्गत 30% भूमि आई |
  • इस व्यवस्था में भू राजस्व का बंदोबस्त एक पुरे गांव या महाल में जमींदारों या उन प्रधानों के साथ किया गया जो सामूहिक रूप से पुरे गांव या महाल के प्रमुख होने का दावा करते थे |किसान लगान महाल के प्रमुख के पास जमा करते थे , तदुपरांत महाल प्रमुख लगान सरकार को देती थी |
  • महाल प्रमुख को यह अधिकार था की वह लगान न देने वाले किसानों को भूमि से बेदखल कर सकते थे |इस व्यवस्था में लगान का निर्धारण महाल या संपूर्ण गांव के उत्पादन के आधार पर किया जाता था |
  • दोष

  • महलवाड़ी बंदोबस्त का सबसे प्रमुख दोष यह था की इसने महाल के मुखिया या प्रधान को अत्यधिक शक्तिशाली बना दिया |यदा कदा मुखिया के द्वारा इस शक्ति का दुरूपयोग किया जाता था |
  • इस व्यवस्था के आने से सरकार और किसानों के बीच प्रत्यक्ष सम्बन्ध बिलकुल समाप्त हो गए |



    COMMENTS (2 Comments)

    Sunil Oct 20, 2017

    Sir date me sudhar ki jaye

    dhanraj mehar Mar 22, 2017

    jankari ke leya dhanywad ham apke abhari rahege ke apne bharat ke history ke bare me jankari de

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