भारतीय संविधान के विकास का इतिहास(1773-1947)

  • admin
  • December 28, 2016

प्रस्तावना

1757 ई. की प्लासी की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा. इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं. वे निम्न हैं:

1773 ई. का रेग्यूलेटिंग एक्ट

इस एक्ट का अत्यधिक संवैधानिक महत्व है जैसे —

  • भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था |अर्थात कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया |
  • इस एक्ट के द्वारा पहली बार कंपनी के राजनैतिक और प्रशासनिक कार्यों को मान्यता मिली |
  • इसके द्वारा केंद्रीय प्रशासन की नींव रखी गई |

इस एक्ट की विशेषताएं

  • इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को बंगाल का गवर्नर जनरल पड़ नाम दिया गया एवं उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद् का गठन किया गया | बंगाल के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे |
  • इसके द्वारा बम्बई एवं मद्रास के गवर्नर बंगाल के गवर्नर जनरल के अधीन हो गए |
  • अधिनियम के अन्तर्गत कलकत्ता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई ,जिसमे मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश थे|
  • इसके तहत कंपनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने और भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबंधित कर दिया गया |
  • इस अधिनियम के द्वारा ब्रिटिश सरकार का कोर्ट ऑफ़ डयरेक्टर्स के माध्यम से कंपनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया | अब कंपनी को भारत में इसके राजस्व नागरिक और सैन्य मामलों की जानकारी ब्रिटिश सरकार को देना आवश्यक कर दिया गया

1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट:

    रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने के लिये इस एक्ट को पारित किया गया। इस एक्ट से संबंधित विधेयक ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री पिट द यंगर ने संसद में प्रस्तुत किया तथा 1784 में ब्रिटिश संसद ने इसे पारित कर दिया।

इस एक्ट के प्रमुख उपबंध निम्नानुसार थे-

  • इसने कंपनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को पृथक पृथक कर दिया |
  • इसने निदेशक मंडल को कंपनी के व्यापारिक मामलों की अनुमति तो दी लेकिन राजनैतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ़ कण्ट्रोल )नाम से एक नए निकाय का गठन कर दिया | इस प्रकार द्वैध शासन व्यवस्था का शुरुआत किया गया |
  • नियंत्रण बोर्ड को यह शक्ति थी की वह ब्रिटिश नियंत्रित भारत में सभी नागरिक , सैन्य सरकार व राजस्व गतिविधियों का अधीक्षण व नियंत्रण करे |
  • इस प्रकार यह अधिनियम दो कारणों से महत्वपूर्ण था – पहला भारत में कंपनी के अधीन क्षेत्रों को पहली बार ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र कहा गया व दूसरा ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया |



1793 ई. का चार्टर अधिनियम:

    इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्यवस्था की गई.

1813 ई. का चार्टर अधिनियम:

अधिनियम की विशेषताएं

  • कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया.
  • कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया. लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा.
  • कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया.

1833 ई. का चार्टर अधिनियम:

    ब्रिटिश भारत के केन्द्रीयकरण की दिशा में यह अधिनियम निर्णायक कदम था |

अधिनियम की विशेषताएं

  • कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए.
  • अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया.
  • बंगाल के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा.जिसमे सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित थी |इस प्रकार इस अधिनियम में एक ऐसी सरकार का निर्माण किया जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले संपूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण हो | लार्ड विलिअम बैंटिक भारत के पहले गवर्नर जनरल थे |
  • इसने मद्रास और बम्बई के गवर्नरों को विधायिका संबंधी शक्ति से वंचित कर दिया |भारत के गवर्नर जनरल को पूरे ब्रिटिश भारत में विधायिका के असीमित अधिकार प्रदान कर दिए गए | इसके अन्तर्गत पहले बनाए गए कानूनों को नियामक कानून कहा गया और नए कानून के तहत बने कानूनों को एक्ट या अधिनियम कहा गया |
  • भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.

1853 ई. का चार्टर अधिनियम:

अधिनियम की विशेषताएं

  • इसने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद् के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया |इसके तहत परिषद् में 6 नए पार्षद और जोड़े गए ,इन्हें विधान पार्षद कहा गया |
  • इसने सिविल सेवाओं की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगता व्यवस्था का शुभारम्भ किया ,और पहली बार सिविल सेवा को भारतीयों के लिए खोल दिया गया और इसके लिए 1854 में मैकाले समिति की नियुक्ति की गई |
  • इसने पहली बार भारतीय केंद्रीय विधान परिषद् में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रदान किया |गवर्नर जनरल की परिषद् में 6 नए सदस्यों में से 4 का चुनाव बंगाल , मद्रास , बम्बई और आगरा की स्थानीय प्रांतीय सरकारों द्वारा किया जाना था |

1858 ई. का चार्टर अधिनियम:

    1857 के विद्रोह ने कंपनी की, जटिल परिस्थितियों में प्रशासन की सीमाओं को स्पष्ट कर दिया था। इसके पश्चात कंपनी से प्रशासन का दायित्व वापस लेने तथा ताज (crown) द्वारा भारत का प्रशासन प्रत्यक्ष रूप से संभालने की मांग और तेज हो गयी। इसीलिये यह अधिनियम पारित किया गया।

अधिनियम की विशेषताएं

  • भारत का शासन ब्रिटेन की संसद को दे दिया गया।
  • अब भारत का शासन, ब्रिटिश साम्राज्ञी की ओर से भारत राज्य सचिव (secretary of state for India) को चलाना था जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्यीय भारत परिषद (India council) का गठन किया गया। अब भारत के शासन से संबंधित सभी कानूनों एवं कदमों पर भारत सचिव की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गयी जबकि भारत परिषद केवल सलाहकारी प्रकृति की थी। (इस प्रकार पिट्स इंडिया एक्ट द्वारा प्रारंभ की गयी द्वैध शासन की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी)।
  • डायरेक्टरों की सभा (Court of Directors) और नियंत्रण बोर्ड या अधिकार सभा (Board of Control) समाप्त कर दिये गये तथा उनके समस्त अधिकार भारत सचिव को दे दिये गये।
  • भारत परिषद के 15 सदस्यों में से 7 सदस्यों की नियुक्ति का अधिकार सम्राट तथा शेष सदस्यों के चयन का अधिकार कंपनी के डायरेक्टरों को दे दिया गया।
  • अखिल भारतीय सेवाओं तथा अर्थव्यवस्था से सम्बद्ध मसलों पर भारत सचिव, भारत परिषद की राय मानने को बाध्य था।
  • भारत के गवर्नर-जनरल को भारत सचिव की आज्ञा के अनुसार कार्य करने के लिये बाध्य कर दिया गया।
  • अब गवर्नर-जनरल, भारत में ताज के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। तथा उसे ‘वायसराय’ की उपाधि दी गयी।
  • संरक्षण-ताज, सपरिषद राज्य सचिव तथा भारतीय अधिकारियों में बंट गया।
  • अनुबद्ध सिविल सेवा (covenanted civil service) में नियुक्तियां खुली प्रतियोगिता द्वारा की जाने लगीं।
  • भारत राज्य सचिव एक निगम निकाय (Corporate Body) घोषित किया गया, जिस पर इंग्लैंड एवं भारत में दावा किया जा सकता था अथवा जो दावा दायर कर सकता था।



1861 ई. का भारत परिषद् अधिनियम:
अधिनियम की विशेषताएं

  • गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया,
  • विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ,
  • गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई.
  • इस अधिनियम में मद्रास और बम्बई प्रेसीडेन्सियों को विधायी शक्तियां पुनः देकर विकेन्द्रीकरण प्रक्रिया की शुरुआत की |
  • इसके द्वारा कानून बनाने की प्रक्रिया में भारतीय प्रतिनिधियों को शामिल करने की शुरुआत की |
  • गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.

1892 ई. का भारत शासन अधिनियम:
अधिनियम की विशेषताएं

  • इसके माध्यम से केंद्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त (गैर सरकारी ) सदस्यों की संख्या बधाई गई |
  • इसने विधान परिषदों के कार्यों में वृद्धि कर उन्हें बजट पर बहस करने और कार्यपालिका के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अधिकृत किया |
  • इसने केंद्रीय विधान परिषद् और बंगाल चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स में गैर सरकारी सदस्यों के नामांकन के लिए वायसराय की शक्तियों का प्रावधान था |

1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले -मिंटो सुधार] –
अधिनियम की विशेषताएं

  • इसने केंद्रीय और प्रांतीय विधानपरिषदों के आकर में काफी वृद्धि की | केंद्रीय परिषद् में इनकी संख्या 16 से ६० हो गई |प्रांतीय विधानपरिषदों में इनकी संख्यां एक सामान नही थी |
  • इसने केंद्रीय परिषद् में सरकारी बहुमत को बनाए रखा लेकिन प्रन्त्येन परिषदों में गैर सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी |
  • इसने दोनों स्तरों पर विधान परिषद् के चर्चा कार्यों का दायर बढ़ाया , जैसे अनुपूरक प्रश्न पूछना , बजट पर संकल्प रखना आदि |
  • इस अधिनियम के अन्तर्गत पहली बार किसी भारतीय को वायसराय और गवर्नर की कार्यपरिषद के साथ एसोसिएशन बनाने का प्रावधान किया गया |सतेन्द्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने | उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था |
  • इस अधिनियम में पृथक निर्वाचन के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया | इसके अन्तर्गत मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते है |इस प्रकार इस अधिनियम ने साम्प्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की |
  • इसने प्रेसीडेंसी कारपोरेशन , चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स , विश्वविद्यालयों और जमींदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का प्रावधान भी किया |

1919 ई० का भारत शासन अधिनियम [मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार] –
अधिनियम की विशेषताएं

  • केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषदतथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था. केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा41 मनोनीत होते थे. इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था. दोनों सदनों के अधिकार समान थे. इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था.
  • प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया. इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित. आरक्षित विषय थे – वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियां, छापाखाना, समाचार पत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालर, श्रमिक कल्याण, औघोगिक विवाद, मोटरगाड़ियां, छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि.
  • हस्तांतरित विषय -शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता. सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उघोग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि.
  • आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था.
  • इसने सांप्रदायिक आधार पर सिखों , भारतीय ईसाईयों , आंग्ल भारतीयों और यूरोपियो के लिए पृथक निर्वाचन के सिद्धान्त को विस्तरित किया |
  • इस कानून ने संपत्ति , कर या शिक्षा के आधार पर सिमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया |
  • इस कानून ने लन्दन में भारत के उच्चायुक्त के कार्यालय का सृजन किया और अब तक भारत सचिव द्वारा किए जा रहे कुछ कार्यों को उच्चायुक्त को स्थानांतरित कर दिया गया |
  • इसने पहली बार केंद्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया और राज्य विधान सभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत किया |
  • भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है.
  • इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया.
  • द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया.



1935 ई० का भारत शासन अधिनियम:
1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्ट थे. इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:

  • अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया.
  • प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया.
  • केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था.
  • संघीय न्यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी.
  • ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे.
  • भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.
  • सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों – भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया.
  • इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था.
  • इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया.

1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम:

    ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया. इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं. अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं –

  • दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी. सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा.
  • भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी.
  • संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं.
  • भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें.
  • 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा.
  • देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया. उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई.



COMMENTS (10 Comments)

Surendra singh Feb 5, 2021

Bdia hai

Ishvar Aug 28, 2020

Thanks for your help

Ishverparaste Aug 28, 2020

Something is right because it,s diply

Sandhya May 19, 2020

Hmara help krne ke liye dhanyvad

Anshuman Soni May 5, 2020

Jankari ke liye dhanyavad

shani verma Apr 21, 2020

ACHHI JANKARI KE LIYE DHANYAWAD

विजय पाण्डेय Aug 7, 2018

Bahut achchi jankari milti hai

जितेन्द्र कुमार May 4, 2018

भारतीय संविधान के विकास का इतिहास(1773-1947) बहुत ही सटीक है |

Vivek R. Rajput Sep 26, 2017

M लक्ष्मीकांत का कॉपी पेस्ट

अपना दिमाग का कुछ नही

Nandan Dec 31, 2016

Very helpful. Team iashindi.

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