ब्रिटिश काल में भारत में शिक्षा का विकास

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ब्रिटिश काल में भारत में शिक्षा का विकास

  • admin
  • November 14, 2016


प्रस्तावना

यहाँ पर मैं ‘राजीव अहीर’ की पुस्तक’आधुनिक भारत का इतिहास’ से कुछ मुख्य बिंदु लिख रहा हूँ ताकि आप अपने दिमाग में एक खाँचा खींच सके |

भारत में शिक्षा का विकास

अंग्रेज़ो के द्वारा भारत में शिक्षा के विकास की शुरुआत 1781 में वारेन हेस्टिंग्स के द्वारा कलकत्ता मदरसा की स्थापना से हुई |इसका उद्देश्य मुस्लिम कानूनों तथा इससे सम्बंधित अन्य विषयों की शिक्षा देना था |इसके उपरांत 1791 में जोनाथन डंकन के प्रयत्नों से बनारस में संस्कृत कॉलेज की स्थापना की गई जिसका उद्देश्य हिन्दू विधि एवं दर्शन का अध्ययन करना था | 1800 में लार्ड वैलेजली के द्वारा फोर्ट विलियम की स्थापना की गई , जहाँ अधिकारियों को विभिन्न भारतीय भाषाओं तथा विभिन्न भारतीय रीति रिवाज़ों की शिक्षा दी जाती थी |
इन सब कॉलेजो में शिक्षा की पद्धति का ढांचा इस प्रकार तैयार किए गए की कंपनी को ऐसे शिक्षित भारतीय नियमित तौर पर उपलब्ध कराए जा सके जो शास्त्रीय व अन्य स्थानीय भाषा के ज्ञाता हो तथा कंपनी के क़ानूनी प्रशासन में उसे मदद कर सके |
यह वही समय था जब प्रबुद्ध भारतीयों एवं मिशनरियों ने सरकार पर आधुनिक ,धर्मनिरपेक्ष ,एवं पाश्चात्य शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए दबाव डालना प्रारम्भ कर दिया क्योंकि —

  • प्रबुद्ध भारतीयों ने निष्कर्ष निकाला की पाश्चात्य शिक्षा के माध्यम से ही देश की सामाजिक ,राजनितिक व आर्थिक दुर्बलता दूर किया जा सकता है |
  • मिशनरियों ने यह निष्कर्ष निकाला की पाश्चात्य शिक्षा के प्रचार से भारतीयों को अनेक परंपरागत धर्म में आस्था समाप्त हो जाएगी तथा वह ईसाई धर्म ग्रहण कर लेंगे |
  • 1813 के चार्टर एक्ट से प्रशंसनीय शुरुआत
    इस एक्ट के द्वारा पहली बार भारत में स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने तथा देश में आधुनिक विज्ञान के ज्ञान को प्रारम्भ एवं उन्नत करने जैसे उद्देश्यों को रखा गया | और इसके लिए कंपनी के द्वारा एक लाख रुपए की राशि स्वीकृत की गई |सरकार ने कलकत्ता ,आगरा और बनारस में तीन संस्कृत कॉलेज स्थापित किए |
    आंग्ल-प्राच्य विवाद
    लोक शिक्षा की सामान्य समिति में शिक्षा को लेकर दो मत थे –एक प्राच्य शिक्षा व दूसरे आंग्ल शिक्षा के समर्थक थे |गवर्नर जनरल की कार्यकारणी परिषद् के सदस्य लार्ड मैकाले ने आंग्ल शिक्षा का समर्थन किया …
    लार्ड मैकाले का स्मरण पत्र –1835 में मैकाले ने कहा कि सरकार के सीमित संसाधनों के मद्देनज़र पाश्चात्य विज्ञान एवं साहित्य की शिक्षा के लिए माध्यम के रूप में अंग्रेजी भाषा ही सर्वोत्तम है —
    इसका प्रभाव —

  • सरकार ने स्कूलों और कॉलेजों में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी बना दिया गया |
  • बड़े पैमाने पर स्कूलों और कॉलेजों कि स्थापना कि गई व जनसाधारण के शिक्षा की उपेक्षा की गई |
  • सरकार की योजना समाज के उच्च एवं मध्य वर्ग के एक तबके को शिक्षित कर एक ऐसी श्रेणी बनाना था जो रक्त एवं रंग से भारतीय हो पर अपने विचार नैतिक मापदंड ,प्रज्ञा एवं प्रवृति से अंग्रेज हो |और यह श्रेणी सरकार तथा जनसाधारण के बीच द्विभाषिये की भूमिका निभा सके |इस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान तथा साहित्य का ज्ञान जनसाधारण तक पहुच जाएगा | इस सिद्धान्त को विप्रेषण सिद्धान्त के नाम से जाना गया |

    थॉमसन के प्रयास

  • थॉमसन ने (1843 – 53 ) ग्राम शिक्षा की एक विस्तृत योजना बनाई |अंग्रेजी माध्यम में शिक्षा देने वाले छोटे छोटे स्कूलों को बंद कर दिया गया |
  • एक शिक्षा विभाग का गठन किया गया |
  • गॉंव के स्कूल में कृषि विज्ञान तथा क्षेत्रमिती जैसे उपयोगी विषयों का अध्ययन प्रारम्भ किया गया | इस शिक्षा के लिए माध्यम देशी भाषा को चुना गया |
  • इसका उद्देश्य नवगठित राजस्व एवं लोक निर्माण विभाग के लिए शिक्षित व्यक्ति उपलब्ध करना था |
  • चार्ल्स वुड डिस्पैच
    चार्ल्स वुड डिस्पैच जिसे भारतीय शिक्षा का Magna-Karta भी कहा जाता है ,भारत में शिक्षा के विकास से सम्बंधित पहला विस्तृत प्रस्ताव था |
    इस डिस्पैच की प्रमुख सिफारिशें निम्न थी —

  • जनसाधारण के शिक्षा का उत्तरदायित्व सरकार वहन करे |
  • गावँ में देशी भाषाओं में प्राथमिक स्कूल ,जिला स्तर पर आंग्ल देशी भाषाई हाई स्कूल तथा बम्बई ,कलकत्ता व मद्रास में विश्वविद्यालय की स्थापना की जाए |
  • उच्च शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी तथा स्कूल शिक्षा का माध्यम देशी भाषा होनी चाहिए |
  • स्त्री शिक्षा तथा व्यवसायिक शिक्षा पर बल दिया गया तथा तकनिकी विद्यालय एवं अध्यापक प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना की सिफारिश की गई |
  • निजी प्रत्यनों को प्रोत्साहित करने के लिए अनुदान सहायता की पद्धति चलाने की सिफारिश की गई|
  • लोक शिक्षा विभाग की स्थापना की गई |
  • शिक्षा के धर्म निरपेक्षता पर बल दिया गया |
  • इसमें इस बात की घोषणा की गई की शिक्षा नीति का उद्देश्य पाश्चात्य शिक्षा का प्रसार था |
  • हंटर शिक्षा आयोग
    देश की प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के स्तर की समीक्षा के लिए सरकार ने W W हंटर के नेतृत्व में एक आयोग बनाया जिसे हंटर शिक्षा आयोग के नाम से जाना जाता है | इस आयोग की सिफारिशें निम्न थी —

  • सरकार को प्राथमिक शिक्षा के सुधार पर विशेष ध्यान देना चाहिए और यह शिक्षा उपयोगी विषयों पर स्थानीय भाषा में होनी चाहिए |
  • प्राथमिक पाठशालाओं का नियंत्रण नवसंस्थापित नगर और जिला बोर्डो को दिया जाना चाहिए |
  • प्राथमिक शिक्षा के दो खंड होने चाहिए —
    साहित्यिक – विश्वविद्यालय शिक्षा के लिए
    व्यवहारिक – व्यवसायिक – व्यपारिक व भविष्य निर्माण के लिए |
  • आयोग ने स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया |
  • भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904—
    1902 में सर टॉमस रैली की अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया गया जिसका उद्देश्य विश्वविद्यालय की स्थिति का आकलन करना था |आयोग की सिफारिशों पर 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित किया गया |
    इस अधिनियम के अनुसार —

  • विश्वविद्यालय को अध्ययन और शोध पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना चाहिए |
  • विश्वविद्यालय के उपसदस्यों की संख्या कम करनी चाहिए और यह प्रावधान करना चाहिए की उप सदस्य मुख्य रूप से सरकार द्वारा मनोनीत हो |
  • विश्वविद्यालय पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया गया |
  • अशासकीय कॉलेजों पर सरकारी नियंत्रण और कड़ा कर दिया गया |
  • विश्वविद्यालय के उत्थान के लिए 5 लाख की राशि स्वीकृत की गई |
  • गवर्नर जनरल को विश्वविद्यालय की क्षेत्रीय सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार दिया गया |
  • शिक्षा नीति पर सरकारी प्रस्ताव —

    शिक्षा नीति पर 1913 में अपने प्रस्ताव में सरकार ने अनिवार्य शिक्षा की जबावदेही लेने से इंकार कर दिया किन्तु उसने अशिक्षा को दूर करने की जिम्मेदारी स्वीकार कर ली तथा प्रांतीय सरकार से आग्रह किया कि वे समाज के निर्धन व कमजोर वर्ग के बच्चो को निःशुल्क प्रारंभिक शिक्षा देने के लिए आवश्यक कदम उठाये |
    सैडलर विश्वविद्यालय आयोग
    वर्ष 1917 में सरकार ने M E सैडलर कि अध्यक्षता में एक आयोग का गठन किया जिसका कार्य कलकत्ता विश्वविद्यालय कि समस्याओं का अध्ययन कर इसकी रिपोर्ट सरकार को देना था |
    इस आयोग कि सिफारिशें निम्नानुसार थी —

  • विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार के लिए पहले प्राथमिक शिक्षा में सुधार आवश्यक है |
  • स्कूलों कि शिक्षा 12 वर्ष कि होनी चाहिए |
  • विश्वविद्यालय से सम्बंधित नियम बनाने में कठोरता नही होनी चाहिए |
  • महिला शिक्षा ,अनुप्रयुक्त विज्ञान एवं तकनिकी शिक्षा तथा अध्यापकों के प्रशिक्षण को ज्यादा प्रोत्साहित किया जाना चाहिए |
  • हर्टोग समिति 1929
    शिक्षण संस्थानों के अंधाधुंध वृद्धि के कारण शिक्षा स्तर में आई गिरावट कि समीक्षा करने के लिए फिलिप हर्टोग कि अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया | इस समिति कि प्रमुख सिफारिशें थी –

  • समिति ने प्राथमिक शिक्षा के महत्व पर बल दिया लेकिन अनिवार्यता या शीघ्र प्रसार को अनुचित बताया |
  • समिति ने अपने रिपोर्ट में कहा कि केवल समर्पित विद्यार्थियों को ही उच्चतर एवं उच्च शिक्षा के विद्यालयों में प्रवेश लेनी चाहिए | जबकि सामान्य स्तर के विद्यार्थियों को 8 वीं कक्षा के पश्चात् व्यवसायिक पाठ्यक्रम में दाखिल लेनी चाहिए |
  • विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार के लिए विश्वविद्यालय प्रवेश के नियम अत्यंत कठोर होने चाहिए |
  • मूल शिक्षा कि वर्धा योजना -1937 – कांग्रेस के द्वारा
    1937 में आधार शिक्षा पर राष्ट्रीय नीति बनाने के लिए जाकिर हुसैन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया |इस समिति के गठन का मूल उद्देश्य ‘गतिविधियों के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करना था ‘
    इस योजना के प्रावधान निम्न थे —

  • पाठ्यक्रम में आधार दस्तकारी को सम्मिलित किया जाए |
  • राष्ट्रीय शिक्षा व्यवस्था के प्रथम सात वर्ष निःशुल्क एवं अनिवार्य होने चाहिए तथा यह शिक्षा मातृ भाषा में होनी चाहिए |
  • कक्षा 2 से 7 तक की शिक्षा का माध्यम हिंदी होना चाहिए | अंग्रेजी भाषा में शिक्षा कक्षा 8 के पश्चात् ही दी जानी चाहिए |
  • शिक्षा हस्त उत्पादित कार्यों पर आधारित होनी चाहिए , अर्थात मूल शिक्षा की योजना का कार्यान्वयन उपयुक्त तकनीक द्वारा शिक्षा देने के सिद्धान्त पर आधारित होनी चाहिए |
  • शिक्षा की यह योजना नए समाज की नई ज़िन्दगी के लिए नए विचारों पर आधारित थी | इस योजना के पीछे यह भावना थी कि इससे देश धीरे धीरे आत्मनिर्भरता एवं स्वतन्त्रा की ओर बढ़ेगा तथा इससे हिंसा रहित समाज का निर्माण होगा |

    शिक्षा की सार्जेंट योजना -1944
    भारत सरकार के शिक्षा सलाहकार सर जान सार्जेंट की अध्यक्षता में शिक्षा की एक राष्ट्रीय योजना बनाई गई |इस योजना के अनुसार

  • 3-6 वर्ष के आयु समूह के लिए पूर्व प्राथमिक या प्रारंभिक शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए |
  • 6 – 11 वर्ष के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए |
  • 11 – 17 वर्ष के चुनिंदा बच्चों के लिए उच्च शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए|
  • शिक्षकों के प्रशिक्षण ,शारीरिक शिक्षा तथा मानसिक एवं शारीरिक तौर पर विकलांगों को शिक्षा दिए जाने पर बल दिया गया |
    20 वर्षों में व्यस्कों को साक्षर बना दिया जाए |


  • COMMENTS (6 Comments)

    Dilip Dec 9, 2017

    Thank you ,sir

    Wasudev Nandan Nag Apr 25, 2017

    Thanks a lot

    rishi Jan 31, 2017

    thanks sir

    sulochana Jan 6, 2017

    Thank you sir

    LillyFunkhou Nov 24, 2016

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    आलोक सिंह Nov 15, 2016

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