शिमला सम्मलेन और वेवैल योजना

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प्रस्तावना

    यद्यपि मई 1945 में यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध, समाप्ति की अवस्था में पहुंच चुका था किंतु भारत पर जापान के आक्रमण का भय अभी भी बना हुआ था। ब्रिटेन में चर्चिल के नेतृत्व में रूढ़िवादी सरकार यह चाहती थी कि भारत में संवैधानिक प्रश्न की किसी भी तरह हल कर लिया जाये। इसीलिये वायसराय लार्ड वैवेल से यह कहा गया कि वो इस संबंध में भारत के नेताओं से विचार-विमर्श कर समझौते का प्रयास करें। जून 1945 में सभी कांग्रेसी नेताओं को जेल से रिहा कर दिया गया।

सरकार समस्या के समाघान हेतु क्यों तत्पर थी?

  • 1945 के मध्य में इंग्लैंड में चुनाव आयोजित होने वाले थे। रूढ़िवादी यह प्रदर्शित करना चाहते थे कि वे समस्या के समधान हेतु गंभीर हैं।
  • विभिन्न राष्ट्रों की ओर से ब्रिटेन पर लगातार यह दबाव डाला जा रहा था कि वो भारत का समर्थन प्राप्त करे।
  • सरकार भारतीयों की ऊर्जा को ऐसी दिशा में मोड़ना चाहती थी, जहां वो अंग्रेजों के लिये लाभदायक हो सके।

योजना

सरकार की ओर से, जब तक नया संविधान न बने, वायसराय की कार्यकारिणी के पुनर्गठन का प्रस्ताव पेश किया गया। इसी उद्देश्य से वायसराय लार्ड वैवेल ने जून 1945 में शिमला में एक सम्मेलन बुलाया। जिसमें कांग्रेस, मुस्लिम लीग एवं अन्य लोगों ने भाग लिया। वेवल योजना के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे-

  • गवर्नर-जनरल की कार्यकारिणी के सभी सदस्य भारतीय होंगे।
  • परिषद में हिन्दू एवं मुसलमानों की संख्या बराबर रखी जायेगी।
  • पुर्नगठित परिषद, 1935 के अधिनियम के ढांचे के तहत अंतरिम सरकार के रूप में कार्य करेगी।
  • यद्यपि गवर्नर-जनरल का निषेधाधिकार (Veto) समाप्त नहीं किया जायेगा परंतु उसका प्रयोग करना आवश्यक नहीं होगा।
  • राजनीतिक दलों की एक संयुक्त सभा आहूत की जायेगी ताकि कार्यकारिणी की नियुक्ति के लिये एक सर्वसम्मत सूची प्रस्तुत की जा सके। किंतु यदि इस मसले पर आम सहमति न बन सके तो इस कार्य के लिये पृथक-पृथक सूचियां प्रस्तुत की जायें।
  • इस बात की पूरी संभावना रखी गयी कि जैसे ही युद्ध में ब्रिटेन को निर्णायक विजय प्राप्त होती है, नये संविधान के निर्माण की आवश्यक प्रक्रिया प्रारंभ की जायेगी।

मुस्लिम लीग की प्रतिक्रिया

    मुस्लिम लीग यह चाहती थी कि लीग को ही समस्त मुसलमानों का प्रतिनिधि माना जाए और वाइसराय की सूची में मुस्लिम लीग से बाहर का कोई मुसलमान नहीं होना चाहिये। लीग को इस बात का भय था कि अल्पसंख्यक वर्ग में- अनुसूचित जातियां, सिख और इसाइयों इत्यादि के प्रतिनिधि होने थे, जिससे प्रस्तावित कार्यकारिणी में मुसलमानों की संख्या केवल एक-तिहाई रह जायेगी। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि पंजाब के संघवादी दल के मलिक खिजर हयात खां जो मुस्लिम लीग के नहीं थे, वैवेल उन्हें कार्यकारिणी में रखना चाहते थे।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया

    कांग्रेस ने यह कहकर वैवेल योजना का विरोध किया कि “इसका प्रयास है कि कांग्रेस की छवि विशुद्ध सवर्ण हिंदू दल की बनकर रह जाये।” इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने यह मांग भी रखी थी उसे यह अधिकार दिया जाये कि वह अपने सदस्यों के मनोनयन में सभी संप्रदाय के सदस्यों को मनोनीत कर सके।

वेवैल की भूल

    वैवेल द्वारा शिमला सम्मेलन को असफल कह कर समाप्त कर दिये जाने से मुस्लिम लीग की स्थिति मजबूत हो गयी। इससे लीग और सुदृढ़ होकर उभरी, जिसका प्रमाण 1945-1946 के चुनावों से मिल गया। वेवेल के कदम से जिन्ना की स्थिति में भी अत्यधिक सुधार आया तथा इसने ब्रिटेन की चर्चिल के नेतृत्व वाली रूढ़िवादी सरकार के मुखौटे को अनावृत कर दिया।

स्रोत – आधुनिक भारत का इतिहास द्वारा राजीव अहीर…



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