मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) संशोधन अधिनियम, 2021

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मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) संशोधन अधिनियम, 2021

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) संशोधन अधिनियम, 2021

चर्चा में क्यों?हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक ऐसी महिला के गर्भ का चिकित्‍सकीय समापन (Medical Termination of Pregnancy-MTP) करने की अनुमति दी है, जिसने गर्भ के 22 सप्ताह पूरे कर लिये थे क्योंकि भ्रूण कई असामान्यताओं से पीड़ित था।

  • गर्भावधि/गर्भकाल का आशय गर्भधारण के समय से जन्म तक भ्रूण के विकास काल से है।
  • भारत में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है जिसके बाद भ्रूण का गर्भपात वैधानिक रूप से अस्वीकार्य है

प्रमुख बिंदु

MTP अधिनियम के बारे में :

  • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 (MTP ACT) को सुरक्षित गर्भपात के संबंध में चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई प्रगति के कारण पारित किया गया था।
  • प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच प्रदान करने के एक ऐतिहासिक कदम में भारत ने व्यापक गर्भपात देखभाल प्रदान करके महिलाओं को और अधिक सशक्त बनाने हेतु MTP अधिनियम 1971 में संशोधन किया।
  • नए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) अधिनियम 2021 को व्यापक देखभाल के लिये सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु चिकित्सीय, उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने हेतु लाया गया है।

MTP संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रमुख प्रावधान:

  • गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता के कारण समाप्ति:
    • अधिनियम के तहत गर्भनिरोधक विधि या उपकरण की विफलता के मामले में एक विवाहित महिला द्वारा 20 सप्ताह तक के गर्भ को समाप्त किया जा सकता है। यह विधेयक अविवाहित महिलाओं को भी गर्भनिरोधक विधि या डिवाइस की विफलता के कारण गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।
  • गर्भ की समाप्ति के लिये चिकित्सकों से राय लेना आवश्यक:
    • गर्भधारण से 20 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये एक पंजीकृत चिकित्सक की राय की आवश्यकता होती है।
    • गर्भधारण के 20-24 सप्ताह तक के गर्भ की समाप्ति के लिये दो पंजीकृत चिकित्सकों की राय आवश्यक होगी।
    • भ्रूण से संबंधित गंभीर असामान्यता के मामले में 24 सप्ताह के बाद गर्भ की समाप्ति के लिये राज्य-स्तरीय मेडिकल बोर्ड की राय लेना आवश्यक होगा।
  • विशेष श्रेणियों के लिये अधिकतम गर्भावधि सीमा
    • महिलाओं की विशेष श्रेणियों (इसमें दुष्कर्म तथा अनाचार से पीड़ित महिलाओं तथा अन्य कमज़ोर महिलाओं जैसे-दिव्यांग महिलाएँ और नाबालिग आदि) के लिये गर्भकाल/गर्भावधि की सीमा को 20 से 24 सप्ताह करने का प्रावधान किया गया है।
  • गोपनीयता:
    • गर्भ को समाप्त करने वाली किसी महिला का नाम और अन्य विवरण, वर्तमान कानून में अधिकृत व्यक्ति को छोड़कर, किसी के भी समक्ष प्रकट नहीं किया जाएगा।

महत्त्व:

  • नया कानून सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) 3.1, 3.7 और 5.6 को पूरा करने में मदद कर रोकथाम योग्य मातृ मृत्यु दर को समाप्त करने में योगदान देगा।
    • SDG 3.1 मातृ मृत्यु अनुपात को कम करने से संबंधित है, जबकि SDG 3.7 और 5.6 यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य तथा अधिकारों तक सार्वभौमिक पहुँच से संबंधित है।
  • संशोधन सुरक्षित गर्भपात सेवाओं तक महिलाओं के दायरे और पहुँच को बढ़ाएगा तथा  उन महिलाओं के लिये गरिमा, स्वायत्तता, गोपनीयता एवं न्याय सुनिश्चित करेगा जिन्हें गर्भावस्था को समाप्त करने की आवश्यकता है।

मुद्दे:

  • गर्भपात संबंधित भिन्न-भिन्न मुद्दे:
    • एक राय यह है कि गर्भावस्था को समाप्त करना गर्भवती महिला की पसंद और उसके प्रजनन अधिकारों का हिस्सा है, जबकि दूसरी यह है कि राज्य का दायित्व है कि वह जीवन की रक्षा करे और इसलिये उसे भ्रूण को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिये।
    • विश्व में देशों ने भ्रूण के स्वास्थ्य और गर्भवती महिला के लिये जोखिम के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने हेतु अलग-अलग शर्तें और समय सीमाएँ निर्धारित की हैं।
  • 24 सप्ताह से अधिक की अवस्था में गर्भपात की अनुमति नहीं है:
    • अधिनियम 24 सप्ताह के बाद गर्भपात की अनुमति केवल उन मामलों में देता है जहाँ एक मेडिकल बोर्ड पर्याप्त भ्रूण असामान्यताओं का निदान करता है।
    • इसका तात्पर्य यह है कि बलात्कार के कारण गर्भपात की आवश्यकता वाले मामले में, जिसे 24 सप्ताह से अधिक समय हो जाता है, रिट याचिका एकमात्र सहारा है।
  •  गर्भपात डॉक्टरों द्वारा किया जाएगा:
    • अधिनियम में केवल स्त्री रोग या प्रसूति में विशेषज्ञता वाले डॉक्टरों द्वारा गर्भपात कराए जाने का प्रावधान है।
      • चूँकि ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में ऐसे डॉक्टरों की 75% कमी है, इसलिये गर्भवती महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात के लिये सुविधाओं तक पहुँचने में मुश्किल हो सकती है।

आगे की राह

  • यह प्रशंसनीय है कि केंद्र सरकार ने विविध संस्कृतियों, परंपराओं और विचारों के समूहों को संतुलित करते हुए साहसिक कदम उठाया है जिसे हमारा देश बनाए रखता है, हालाँकि संशोधन में अभी भी महिलाओं को विभिन्न शर्तों के साथ छोड़ दिया गया है जो कई मामलों में सुरक्षित गर्भपात तक पहुँच में बाधा बन जाता है।
    • न्यायमूर्ति के.एस. पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) बनाम भारत संघ और अन्य (2017), मामले में न्यायालय ने  प्रजनन संबंधी विकल्प को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में महिलाओं के संवैधानिक अधिकार को मान्यता दी, जो कि प्रजनन अधिकारों और एक महिला की गोपनीयता को बनाए रखने की नैतिकता को मज़बूती प्रदान करने के बावजूद एक चिकित्सक द्वारा गर्भपात करने के अधिकार को गर्भपात की इच्छा रखने वाली महिला के मौलिक अधिकार के रूप में परिवर्तित नहीं करता है।
  • सरकार को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि देश भर के स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों में गर्भपात की सुविधा के लिये नैदानिक प्रक्रियाओं से संबंधित सभी मानदंडों और मानकीकृत प्रोटोकॉल का पालन किया जाए।
  • इसके साथ ही मानव अधिकारों, ठोस वैज्ञानिक सिद्धांतों और प्रौद्योगिकी में उन्नति के अनुरूप गर्भपात के मामले पर फैसला लिया जाना चाहिये।
  • चूँकि यह अब एक अधिनियम बन गया है, इसलिये यह आश्वासन दिया जा सकता है कि देश पहले से कहीं अधिक तेज़ी से महिलाओं के मुद्दों को संबोधित करने के लिये प्रगति की राह पर है।

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