प्रस्तावना
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ग्लोबल वार्मिंग को पृथ्वी के वायुमंडल के समग्र तापमान में क्रमिक वृद्धि के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसमें सामान्यतः कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य प्रदूषकों के स्तर में वृद्धि को ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है। ग्लोबल वार्मिंग का व्यापक प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। यह प्रभाव निम्नलिखित हो सकते हैं-
वैश्विक जलवायु पर प्रभाव
- भारी वर्षा की आवृत्ति में वृद्धि, सूखा, वायु गति में वृद्धि, दीर्घकालीन हीट वेव और कोल्ड वेव और मौसम में बदलाव से विनाशकारी क्षति हो सकती है।
- यह महासागरीय धारा परिसंचरण और वायु परिसंचरण में परिवर्तन ला कर स्थानीय जलवायु में भी परिवर्तन करेगा।
जैव विविधता पर प्रभाव
- यदि वैश्विक औसत तापमान में 1.5 – 2.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक वृद्धि होती है, तो अब तक अंकित प्रजातियों में से लगभग 20 से 30% के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाने की संभावना है।
- नए क्षेत्रों की ओर जीवों और वनस्पतियों का भारी पलायन होगा।
- कार्बन डाइऑक्साइड में वृद्धि के कारण समुद्र का अम्लीकरण होगा जिससे पादप प्लवक में कमी आएगी। जिनके कमी से समुद्री जैव विविधता की सुभेद्यता बढ़ेगी।
- ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्री जल स्तर में वृद्धि होगी जिससे डाटा और मैंग्रोव क्षेत्र में रहने वाले प्रजातियों के लिए संकट उत्पन्न होगा।
वैश्विक खाद्य उत्पादन पर प्रभाव
- एक रिपोर्ट के अनुसार तापमान में 1 डिग्री की बढ़ोतरी से खाद उत्पादन में 30% गिरावट आ सकती है। इसके अतिरिक्त कीट और रोगों की बढ़ती जटिलता ने उत्पादकता को प्रभावित किया है। नवीनतम PCC रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग से अगले कुछ दशकों में मध्य और कुछ अक्षांश में खाद्य उत्पादन की स्थिति में सुधार हो सकता है। इसके विपरीत, उपोष्णकटिबंधीय और निम्न अक्षांश क्षेत्र में खाद उत्पादन में गिरावट का अनुभव किया जा सकता है।
- इससे मत्स्यन भी सुभेद्य हो सकता है।
वैश्विक स्वास्थ्य पर प्रभाव
- ग्लोबल वार्मिंग से वेक्टर जनित रोगों का प्रभाव उच्च अक्षांशों तक हो सकता है।
- निम्नस्तरीय प्रदूषण श्वसन संबंधी स्वास्थ्य समस्याएं और विभिन्न अन्य एलर्जी रोगों में वृद्धि हो सकती है।
- ग्लोबल वार्मिंग से भोजन की कमी हो सकती है जिससे कुपोषण भी हो सकता है।
विश्व राजनीति पर प्रभाव
- पहले से ही विकसित और विकासशील देशों के बीच CBDR के तहत जवाबदेही लेने के लिए तनाव बढ़ रहा है।
- यह विशेष रूप से छोटे द्वीपों और गरीब देशों से, बड़े पैमाने पर लोगों के पलायन के कारण विकसित देशों के संसाधनों पर आर्थिक और सामाजिक दबाव को बढ़ाएगा।
- ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा तथा जल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के ऊपर क्षेत्रीय तनाव, क्षेत्रीय संघर्ष को जन्म दे सकता है।
निष्कर्ष
- अभी समय की मांग है कि सभी राष्ट्र एक साथ आगे आए और UNFCCC के तहत ग्लोबल वार्मिंग का मुकाबला करने के लिए अपने विशेष INDC (Intended Nationally Determinrd Contribution) को लागू करें।
Harsh Jun 11, 2020
Very hood site please sir ias exam ke liye answer writing bhi bta dijiye...