प्रारंभिक व्यवस्थायें
समाचार पत्रों का पत्रेक्षण अघिनियम, 1799 The censorship of press act, 1799
अनुज्ञप्ति नियम, 1823 Licensing Regulation, 1823
1835 का प्रेस अधिनियम या मेटकॉफ अधिनियम Press Act of 1835
अनुज्ञप्ति अघिनियम, 1857 Licensing Act, 1857
पंजीकरण अधिनियम, 1867 Registration Act,1867
प्रेस की स्वतंत्रता को बचाने के लिये प्रारंभिक राष्ट्रवादियों द्वारा किये गये प्रयास
इन वर्षों में कई निर्भीक एवं प्रसिद्ध पत्रकारों के संरक्षण में अनेक नये समाचार-पत्रों का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। इन समाचार-पत्रों में प्रमुख थे- हिन्दू एवं स्वदेश मित्र जी. सुब्रह्मण्यम अय्यर के संरक्षण में, द बंगाली सुरेंद्रनाथ बनर्जी के संरक्षण में, वॉयस आफ इंडिया दादा भाई नौरोजी के संरक्षण में, अमृत बाजार पत्रिका शिशिर कुमार घोष एवं मोतीलाला घोष के संरक्षण में, इंडियन मिरर एन.एन. सेन के संरक्षण में, केसरी (मराठी में) एवं मराठा (अंग्रेजी में) बाल गंगाधर तिलक के संरक्षण में, सुधाकर गोपाल कृष्ण गोखले के संरक्षण में तथा हिन्दुस्तान एवं एडवोकेट जी.पी.वर्मा के संरक्षण में। इस समय के अन्य प्रमुख समाचार-पत्रों में- ट्रिब्यून एवं अखबार-ए-एम पंजाब में, गुजराती, इंदू प्रकाश ध्यान, प्रकाश एवं काल बंबई में तथा सोम प्रकाश, बंगनिवासी एवं साधारणी बंगाल में उल्लेखनीय थे।
इन समाचार-पत्रों के प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य, राष्ट्रीय एवं नागरिक सेवा की भावना थी न कि धन कमाना या व्यवसाय स्थापित करना। इनकी प्रसार संख्या काफी अधिक थी तथा इन्होंने पाठकों के मध्य व्यापक प्रभाव स्थापित कर लिया था। शीघ्र ही वाचनालयों (लाइब्रेरी) में इन समाचार-पत्रों की विशिष्ट छवि बन गयी। इन समाचार-पत्रों की पहुंच एवं प्रभाव सिर्फ शहरों एवं कस्बों तक ही नहीं था अपितु ये देश के दूर-दूर के गावों तक पहुंचते थे, जहां पूरा का पूरा गांव स्थानीय वाचनालय (लाइब्रेरी) में इकट्ठा होकर इन समाचार-पत्रों में प्रकाशित खबरों को पढ़ता था एवं उस पर चर्चा करता था। इस परिप्रेक्ष्य में इन वाचनालयों में इन समाचार-पत्रों ने न केवल भारतीयों को राजनीतिक रूप से शिक्षित किया अपितु उन्हें राजनीतिक भागेदारी हेतु भी प्रोत्साहित एवं निर्मित किया। इन समाचार पत्रों में सरकार की भेदभावपूर्ण एवं दमनकारी नीतियों की खुलकर आलोचना की जाती थी। वास्तव में इन समाचार-पत्रों ने सरकार के सम्मुख विपक्ष की भूमिका निभायी।
राष्ट्रीय आंदोलन, प्रारंभ से ही प्रेस की स्वतंत्रता का पक्षधर था। लार्ड लिटन के शासनकाल में उसकी प्रतिक्रियावादी नीतियों एवं अकाल (1876-77) पीड़ितों के प्रति उसके अमानवीय रवैये के कारण भारतीय समाचार-पत्र सरकार के घोर आलोचक बन गये। फलतः सरकार ने 1878 में देशी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम (vernacular press Act) द्वारा भारतीय प्रेस को कुचल देने का प्रयास किया।
देशी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम, 1878 The vernacular Press Act, 1878
1857 की महान क्रांति का एक प्रमुख परिणाम था- शासक और शासितों के बीच संबंधों में कटुता। 1858 के पश्चात यूरोपीय प्रेस ने सरकार की नीतियों का समर्थन किया तथा विवादास्पद मामलों में सरकारी पक्ष का साथ दिया किंतु देशी भाषाओं के प्रेस सरकारी नीतियों के तीव्र आलोचक थे। लार्ड लिटन की प्रतिक्रियावादी नीतियों के कारण भारतीयों में सरकार के विरुद्ध तीव्र असंतोष था। 1876-77 में भीषण अकाल से एक ओर जहां लाखों लोग मौत के मुंह से समा गये, वहीं दूसरी ओर जनवरी 1877 में दिल्ली में भव्य दरबार का आयोजन किया गया। इन सभी कारणों से भारतीयों में उपनिवेशी शासन के विरुद्ध घृणा की भावना निरंतर बढ़ रही थी। दूसरी ओर लार्ड लिटन ने यह निष्कर्ष निकाला कि भारतीयों में इस असंतोष का कारण मैकाले एवं मैटकॉफ की गलत नीतियां थीं। फलतः उसने भारतीयों की भावनाओं की दबाने का निर्णय लिया।
1878 के देशी भाषा समाचार-पत्र अधिनियम को बनाने का उद्देश्य, भारतीय भाषाओं के समाचार-पत्रों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करना तथा राजद्रोही लेखों को दबाना एवं ऐसे प्रयास के लिये समाचार-पत्रों को दडित करना था। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नानुसार थे-
इस अधिनियम को ‘मुंह बंद करने वाले अधिनियम’ की संज्ञा दी गयी। इस अधिनियम का सबसे घृणित पक्ष यह था कि-
इसके द्वारा अंग्रेजी एवं देशी भाषा के समाचार-पत्रों के मध्य भेदभाव किया गया था; एवं
इसमें अपील करने का कोई अधिकार नहीं था।
इस अधिनियम के तहत भारत मिहिर, सोम प्रकाश, सहचर, ढाका प्रकाश तथा अनेक अन्य समाचार पत्रों के विरुद्ध मामले दर्ज किये गये।
इस अधिनियम की कार्यवाही से बचने के लिये अमृत बाजार पत्रिका रातोंरात अंग्रेजी समाचार पत्र में परिवर्तित हो गयी।
कालांतर में (सितम्बर 1878 से), पूर्ण पत्रेक्षण (Pre-censorship) की धारा हटा दी गयी तथा उसके स्थान पर प्रेस आयुक्त की नियुक्ति की गयी, जिसका कार्य समाचार-पत्रों को विश्वसनीय एवं सही जानकारी उपलब्ध कराना था।
इस अधिनियम के विरुद्ध सारे देश में तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की गयी तथा अंततः 1882 में उदारवादी गवर्नर-जनरल लार्ड रिपन ने इसे रद्द कर दिया।
1883 में सुरेंद्रनाथ बनर्जी देश के ऐसे प्रथम पत्रकार बने, जिन्हें कारावास की सजा दी गयी।
प्रेस की स्वतंत्रता के लिये किये जा रहे राष्ट्रवादी प्रयासों में बाल गंगाधर तिलक की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी। तिलक ने 1893 में गणपति उत्सव एवं 1896 में शिवाजी उत्सव प्रारंभ करके लोगों में देशप्रेम की भावना जगाने का प्रयास किया। उन्होंने अपने पत्रों मराठा एवं केसरी के द्वारा भी अपने प्रयासों को आगे बढ़ाया। वे प्रथम कांग्रेसी थे, जिन्होंने समाज के मध्यवर्गीय लोगों, किसानों, शिल्पकारों, दस्तकारों, कारीगरों तथा मजदूरों को कंग्रेस से जोड़ने का प्रयास किया। 1896 में कपास पर उत्पाद शुल्क आरोपित करने के विरोध में उन्होंने पूरे महाराष्ट्र में विदेशी कपड़ों के बहिष्कार का अभियान चलाया। 1896-97 में उन्होंने महाराष्ट्र में ही ‘कर ना अदायगी’ अभियान चलाया तथा किसानों से आग्रह किया कि फसल बर्बाद हो जाने की स्थिति में वे सरकार को लगान न अदा करें।
समाचार पत्र अधिनियम, 1908 The News Paper Act, 1908
भारतीय समाचार पत्र अधिनियम, 1910 The Indian Press Act, 1910
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान एवं उसके पश्चात
भारतीय समाचार-पत्र (संकटकालीन स्थितियां) अधिनियम, 1931 Indian Press (emergency powers) Act, 1931
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान
[…] September 16, 2017 IAS HINDI History, History of Modern India 0 […]
Puja kumari Jun 2, 2018
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