समसामयिकी अक्टूबर : CURRENT AFFAIRS OCTOBER :1-7

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समसामयिकी अक्टूबर : CURRENT AFFAIRS OCTOBER :1-7




हज नीति 2018 -22

  • अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय, भारत सरकार ने 2013-17 के लिए सरकार की हज नीति की समीक्षा करने तथा हज नीति 2018-22 के लिए रूपरेखा का सुझाव देने के लिए एक समिति गठित की थी। अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की ओर से गठित समिति के संयोजक रिटायर्ड IAS अधिकारी अफजल अमानुल्लाह थे।
  • समिति ने 7 अक्तूबर, 2017 को मुंबई में केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। समिति की मुख्य सिफारिशें निम्नलिखित अनुसार हैंः
    • भारतीय हज समिति और निजी टूर आपरेटरों के बीच कोटे का वितरण अगले 5 वर्षों के लिए 70:30 के अनुपात में युक्तिसंगत बनाया जाए।
    • राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के बीच सीटों का वितरण उनकी मुस्लिम आबादी के अनुपात के साथ-साथ प्राप्त आवेदनों के अनुपात में किया जाए।
    • इसमें यह भी प्रावधान किया गया है कि हज यात्रियों के प्रस्थान के स्थानों की संख्या को 21 से घटाकर नौ किया जाएगा।
    • नई हज नीति को 2012 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक तैयार किया गया है। शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा था कि 10 साल की अवधि में सब्सिडी खत्म की जाए।

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
प्रस्तावना

    हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय; ने यह दावा किया है कि ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ योजना के अंतर्गत कवर किये गए देश के 161 ज़िलों में से 104 ज़िलों में ‘जन्म के समय लिंगानुपात’(sex ratio at birth-SRB) में वृद्धि दर्ज़ की गई है, जबकि शेष 57 ज़िलों में इसी लिंगानुपात में कमी देखी गई है। विदित हो कि इस योजना की शुरुआत 22 जनवरी 2015 को हरियाणा राज्य से की गई थी|

प्रमुख बिंदु

  • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय इस योजना के लिये एक नोडल मंत्रालय है, जो मानव संसाधन विकास और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से ‘बाल लिंगानुपात’(child sex ratio-CSR) तथा एस.आर.बी. में कमी लाने का प्रयास करता है।
  • ज़िला स्तर पर इस योजना का नेतृत्व कलेक्टर द्वारा किया जाता है।
  • अब यह मंत्रालय उन 57 ज़िलों पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है जहाँ एस.आर.बी. में कमी देखी गई थी।
  • 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय गर्ल चाइल्ड डे’(International Girl Child Day) के अवसर पर मंत्रालय ने अगले सप्ताह का ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ सप्ताह के रूप में पर्यवेक्षण करने की योजना बनाई है।
  • इस योजना के कारण खराब महिला-पुरुष लिंगानुपात (female-to-male sex ratio ) वाले राज्यों में भी सुधार देखा गया है।
  • योजना के तहत सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों में मिज़ोरम का सैहा (Saiha), जम्मू और कश्मीर के निकोबार (Nicobar), शोपिया (Shopian) और बांदीपुरा (Bandipura) ज़िले तथा उत्तर प्रदेश का गाज़ियाबाद ज़िला शामिल है।

जन्म के समय लिंगानुपात

  • इसे प्रति 1,000 लड़कों पर जन्म लेने वाली लड़कियों की संख्या से परिभाषित किया जाता है। इसका पता एक वर्ष में जन्में बच्चे के पंजीकरण से लगाया जाता है।

बाल लिंगानुपात

  • इसे 0-6 आयुवर्ग के प्रति 1,000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या के रूप में परिभाषित किया जाता है । इसके लिये प्रत्येक दस वर्षों में आँकड़े जारी किये जाते हैं।

राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सव-2017 का उद्घाटन

  • ‘राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सव-2017’ के 6वें संस्करण का आयोजन भारत के प्रथम विश्‍व धरोहर नगर अर्थात अहमदाबाद, गुजरात में 7 से 9 अक्‍टूबर, 2017 मे आयोजित किया जाएगा।
  • राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सव की संकल्‍पना संस्‍कृति मंत्रालय द्वारा 2015 में की गई थी और नवंबर 2015 में प्रथम राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सव की महान सफलता के बाद संस्‍कृति मंत्रालय ने देश के सांस्‍कृतिक रूप से समृद्ध धरोहर को प्रदर्शित करने के उद्देश्‍य से इसके आयोजन का फैसला किया जहां एक ही स्‍थान पर इसके सभी समृद्ध और विविध आयामों जैसे हस्‍तशिल्‍प, पाक प्रणाली, चित्रकारी, मूर्तिकला, फोटोग्राफी, दस्‍तावेजीकरण एवं प्रदर्शनकलाओं- लोकगीत, जनजातीय, पारंपरिक एवं समसामयिक का प्रदर्शन किया जा सके।
  • अभी तक इस मंत्रालय ने 5 राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सवों का आयोजन किया है, जिसमें दिल्‍ली में दो बार तथा वाराणसी, बंगलूरु एवं पूर्वोत्‍तर में एक-एक बार सभी पूर्वोत्‍तर राज्‍यों की राजधानियों में राष्‍ट्रीय संस्‍कृति महोत्‍सव का आयोजन शामिल है।

अंधविश्वास निरोधक विधेयक
प्रस्तावना

    हाल ही में कर्नाटक सरकार ने अंधविश्वास विरोधी विधेयक को मंज़ूरी दे दी है। विदित हो कि अमानवीय प्रथाओं और काला जादू की रोकथाम और उन्मूलन विधेयक 2017 (अंधविश्वास विरोधी विधेयक) पर काफी वक्त से बहस चल रही थी। इस विधेयक में कुछ गंभीर मामलों में मौत की सज़ा का भी प्रावधान है।

अंधविश्वास निरोधक विधेयक में क्या है?

  • कर्नाटक में सिद्दुभुक्टी, माता, ओखली जैसे कई रिवाज़ आपराधिक माने गए हैं, जिनसे इंसान की जान को खतरा होता है। विधेयक के मुताबिक, अगर ऐसी किसी दकियानूसी प्रथा से इंसान की जान चली जाती है, तो दोषियों को मौत की सज़ा दी जा सकती है।
  • विधेयक में अंधविश्वास को फैलाने वाले तत्त्वों के खिलाफ एक्शन लेने का भी प्रावधान है। यदि गाँव का ओझा ग्रामीणों को झाड़-फूँक के जाल में फँसाएगा, तो उसके अलावा उस व्यक्ति के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी जो उसका प्रचार-प्रसार कर रहा है।
  • इसके लिये सरकार प्रचार के सभी माध्यमों पर भी नज़र रखेगी। यह विधेयक आम लोगों के हक में होगा और शरारती तत्त्वों को काबू में रखने में मदद करेगा।
  • इस विधेयक में नर बलि पर पूर्ण प्रतिबंध का प्रस्ताव किया गया है। कर्नाटक के कुछ गाँवों में अंधविश्वास के चलते नर बलि की प्रथा भी प्रचलित है।
  • अंधविश्वास विरोधी विधेयक में नर बलि के साथ-साथ पशु की गर्दन पर वार कर उसकी बलि पर भी प्रतिबंध लगाने की बात कही गई है।
  • इस विधेयक में ‘बाईबिगा प्रथा’ के नाम पर लोहे की रॉड को मुंह के आर-पार करते हुए करतब करना, ‘बनामाथी प्रथा’ के नाम पर पथराव करना, तंत्र-मंत्र से प्रेत या आत्मा को बुलाने की मान्यता पर भी प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
  • अंधविश्वास विरोधी विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और बच्चियों को देवदासी बनाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।
  • इस विधेयक में धर्म के नाम पर महिलाओं और लड़कियों के यौन शोषण को रोकने और खत्म करने का प्रावधान किया गया है।

क्यों महत्त्वपूर्ण है यह प्रथा

  • कर्नाटक के कई गाँवों में लोग आज भी बीमारियाँ ठीक करने के लिये बच्चों को काँटों पर सुला देते हैं या गर्भवती महिला को किसी तरह की शारीरिक या मानसिक यातना देते हैं। यह विधेयक जैसे ही कानून की शक्ल लेगा ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता बढ़ेगी।
  • विदित हो कि ऐसा कानून महाराष्ट्र में बहुत पहले से है और अब कर्नाटक में इसे मज़बूती से लागू करने के लिये राज्य सरकार गंभीर है। कुप्रथाओं के उन्मूलन में कानूनी प्रावधानों की उपयोगिता अवश्य है, लेकिन समाज से अंधविश्वासों को जड़ से समाप्त करने के लिये पर्याप्त नहीं है।
  • कुछ लोगों का मत यह हो सकता है कि प्रस्तावित कानून संविधान के अनुच्छेद 25 (प्रत्येक व्यक्ति को अन्तःकरण की स्वतंत्रता और धर्म के अबाध रूप में मानने, आचरण करने तथा प्रचार करने का अधिकार) का उल्लंघन करता है। हालाँकि इसे एक उचित प्रतिबंध के रूप में देखा जाना चाहिये, क्योंकि इससे सार्वजनिक हित सुनिश्चित होता है।

कॉलेजियम के फैसले वेबसाइट पर डाले जाएंगे
प्रस्तावना

  • न्यायपालिका में कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर प्रायः सवाल उठते रहे हैं, लेकिन न्यायपालिका की ‘स्वतंत्रता’ का हवाला देकर हमेशा से इसका बचाव किया जाता रहा है। हालाँकि अब पहली बार तय किया गया है कि कॉलेजियम के फैसलों को सार्वजनिक किया जाएगा।
  • विदित हो कि कॉलेजियम व्यवस्था ने अपने फैसले शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया है। कॉलेजियम व्यवस्था की कार्यवाही में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उसके फैसलों को वेबसाइट पर अपलोड किया जाएगा।

क्या है कॉलेजियम व्यवस्था?

  • देश की अदालतों में जजों की नियुक्ति की प्रणाली को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में बनी वरिष्ठ जजों की समिति जजों के नाम तथा नियुक्ति का फैसला करती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय में जजों की नियुक्ति तथा तबादलों का फैसला भी कॉलेजियम ही करता है। उच्च न्यायालय के कौन से जज पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय जाएंगे यह फैसला भी कॉलेजियम ही करता है।
  • उल्लेखनीय है कि कॉलेजियम व्य‍वस्था का उल्लेख न तो मूल संविधान में है और न ही उसके किसी संशोधित प्रावधान में। वर्तमान में कॉलेजियम व्यवस्था के अध्यक्ष चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा हैं और जस्टिस जे. चेलामेश्वरम, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी. लोकूर और जस्टिस कुरियन जोसेफ इसके सदस्य हैं।

कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर क्यों है विवाद?

  • दरअसल, कॉलेजियम पाँच लोगों का समूह है और इन पाँच लोगों में शामिल हैं भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठ न्यायाधीश। कॉलेजियम के द्वारा जजों के नियुक्ति का प्रावधान संविधान में कहीं नहीं है।
  • कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर विवाद इसलिये है क्योंकि यह व्यवस्था नियुक्ति का सूत्रधार और नियुक्तिकर्त्ता दोनों स्वयं ही है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका की भूमिका बिल्कुल नहीं है या है भी तो बस मामूली।

कॉलेजियम में सुधार के प्रयास

  • गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और तबादले के लिये राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम बनाया था।
  • उल्लेखनीय है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति करने वाले इस आयोग की अध्यक्षता भारत के मुख्य न्यायाधीश को करनी थी। इसके अलावा, सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठ न्यायाधीश, केन्द्रीय विधि मंत्री और दो जानी-मानी हस्तियाँ भी इस आयोग का हिस्सा थीं।
  • आयोग में जानी-मानी दो हस्तियों का चयन तीन सदस्यीय समिति को करना था, जिसमें प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश और लोकसभा में नेता विपक्ष या सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल थे।
  • आयोग से संबंधित एक दिलचस्प बात यह थी कि अगर आयोग के दो सदस्य किसी नियुक्ति पर सहमत नहीं हुए तो आयोग उस व्यक्ति की नियुक्ति की सिफारिश नहीं करेगा।

ठेकेदारों के लिये तीन-वर्षीय लाइसेंस की सिफारिश
प्रस्तावना

    भारत सरकार द्वारा अनुबंध श्रम कानून में एक बड़ा बदलाव करते हुए नए नियमों की रुपरेखा प्रस्तुत की गई है। इन नए नियमों के अनुसार, नए काम हेतु एक अलग लाइसेंस की बजाय देश भर में काम करने के लिये ठेकेदारों को तीन साल का लाइसेंस प्रदान किये जाने का प्रावधान शामिल किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • अनुबंध श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम [Contract Labour (Regulation and Abolition) Act], 1970 में प्रस्तावित परिवर्तनों के अनुसार, ठेकेदारों को अब प्रत्येक परियोजना के लिये एक नए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी।
  • इस नए प्रस्ताव के अनुसार, यदि कोई ठेकेदार एक ही राज्य में तीन साल तक काम करना चाहता है तो उसे राज्य सरकार से परमिट लेना होगा।
  • हालाँकि, ठेकेदार को जब भी किसी कंपनी से काम करने का आदेश प्राप्त होगा तो उसे सरकार को सूचित करना आवश्यक होगा। ऐसा न करने पर उस ठेकेदार का लाइसेंस रद्द भी किया जा सकता है।

ज़िम्मेदारियों में विभाजन

  • प्रस्तावित कानून के अंतर्गत ऐसे ठेकेदार जो सेवाएँ प्रदान करते हैं तथा वे जो मानव संसाधन मुहैया कराते हैं, के मध्य विभेदन किया गया है।
  • ऐसे ठेकेदार जो किसी कंपनी को मानव संसाधन मुहैया कराते हैं, वे अब श्रमिकों के लिये कैंटीन और टॉयलेट सुविधाएँ प्रदान करने के लिये ज़िम्मेदार नहीं होंगे।
  • इन श्रमिकों को कैंटीन एवं शयनकक्ष जैसी सुविधाएँ उपलब्ध कराने की ज़िम्मेदारी उस मुख्य नियोक्ता की होगी, जो ठेकेदार के माध्यम से श्रमिकों को काम पर रखता है।
  • श्रम कानून में प्रस्तावित प्रावधानों के अनुसार, अगर किसी ऐसे ठेकेदार को काम संबंधी आदेश दिया जाता है जिसने पेरोल पर कर्मचारियों को काम पर रखा है, तो उन श्रमिकों को अनुबंध श्रम (नियमन और उन्मूलन) अधिनियम के तहत अनुबंध श्रमिकों के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जाएगा।
  • सरकार द्वारा नकद भुगतान के बदले इलेक्ट्रॉनिक तरीके से मज़दूरी का भुगतान करने संबंधी प्रस्ताव भी प्रस्तुत किया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि प्रस्तावित श्रम कानून अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन कन्वेंशन 181 (निजी रोज़गार एजेंसियों के संबंध में) के अनुरूप तैयार किये गए हैं।
  • वर्तमान में, प्रत्येक कार्य के अनुबंध के साथ लाइसेंस के नवीनीकरण में शामिल जटिलताओं के कारण ठेकेदार श्रम कानूनों के अनुपालन से बचते रहते हैं।

भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता
प्रस्तावना

    हाल ही में ‘अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी’ (International Energy Agency -IEA) द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में वर्ष 2022 तक दोगुनी से अधिक वृद्धि होगी। विदित हो कि ऊर्जा में होने वाली इस बढ़ोतरी के कारण यह पहली बार यूरोपीय संघ में हुए नवीकरणीय ऊर्जा विस्तार को पीछे छोड़कर उससे आगे निकल जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, वर्तमान में भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 58.30 गीगावाट है। अतः सरकार ने वर्ष 2022 तक 175 गीगावाट ऊर्जा उत्पन्न करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य के तहत 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा का उत्पादन किया जाएगा।
  • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में सौर फोटोवोल्टिक (solar photovoltaic) और पवन ऊर्जा का संयुक्त रूप से 90% योगदान है।
  • इस वर्ष लगाए गए नवीकरणीय ऊर्जा के पूर्वानुमान पिछले वर्ष से 12% अधिक है, जिसका कारण चीन और भारत में लगाए गए सौर फोटोवोल्टिक हैं। चीन, भारत और अमेरिका वर्ष 2022 में वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा के दो-तिहाई भाग के उपभोक्ता होंगे।

नवीकरणीय ऊर्जा क्या है?

    यह ऐसी ऊर्जा है जो प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इसमें सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, पवन, ज्वार, जल और बायोमास के विभिन्न प्रकारों को शामिल किया जाता है।

यह क्यों महत्त्वपूर्ण है?

  • यह स्वच्छ ऊर्जा का एक प्रकार है जोकि प्रकृति में उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों से प्राप्त होती है।
  • कुछ देशों में नवीकरणीय ऊर्जा जीवाश्म ईंधनों से सस्ती है। कुछ देशों में नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा का एक सस्ता विकल्प है। ध्यातव्य है देशों की उच्च क्षमता के कारण उनके लिये नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन करना अपेक्षाकृत आसान होता है।
  • एक पवन ऊर्जा टरबाइन से 300 घरों की आवश्यकता की पूर्ति हेतु आवश्यक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है।
  • जीवाश्म ईंधनों के समान नवीकरणीय स्रोत प्रत्यक्षतः हरित गृह गैसों का उत्सर्जन नहीं करते हैं। ध्यातव्य है कि हरितगृह गैसों के कारण ही वैश्विक तापन की घटना देखने को मिलती है।
  • सर्वेक्षण दर्शाते हैं कि विश्व में कोयला, तेल, गैस और यूरेनियम की अपेक्षा भू-तापीय ऊर्जा के लिये संसाधन आधार काफी अधिक मात्र में उपलब्ध हैं।
  • वर्तमान में बायोमास अमेरिका का सबसे बड़ा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है क्योंकि वहाँ मौज़ूद इसके 200 संयंत्र लगभग 1.5 मिलियन अमेरिकी घरों को बिजली उपलब्ध कराते हैं।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • मात्र 5 वर्षों के अंतराल पर पुर्तगाल के इलेक्ट्रिक ग्रिड में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 15% से बढ़कर 45% हो चुका है।
  • वर्ष 2050 तक उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका में नवीकरणीय ऊर्जा का ही उपयोग किये जाने का अनुमान है।
  • वर्ष 2020 तक वैश्विक विद्युत मांग में सौर फोटोवोल्टिक का योगदान 5% होगा, जबकि वर्ष 2030 में यही योगदान 9% होगा।
  • विगत 30 वर्षों में आइसलैंड की बिजली आपूर्ति में आयातित कोयले के 75% की तुलना में 80% योगदान स्थानीय भू-तापीय और जल ऊर्जा का रहा है।
  • वर्ष 2050 में हमारी 95% ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति नवीकरणीय ऊर्जा से ही होगी।

क्या हैं चुनौतियाँ?

  • सामान्यतः जीवाश्म ईंधन ऊर्जा की तुलना में नवीकरणीय ऊर्जा को उत्पन्न करने तथा उपयोग करने की लागत अधिक है। अनुकूल नवीकरणीय संसाधन प्रायः दूरस्थ स्थानों पर पाए जाते हैं और जिन शहरों को बिजली की अधिक आवश्यकता होती है, वहाँ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली बनाने में अत्यधिक खर्च आता है। इसके अतिरिक्त, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत हमेशा उपलब्ध भी नहीं रहते हैं।
  • बादल, सौर ऊर्जा संयंत्रों से बनने वाली बिजली की मात्रा को कम कर देते हैं।
  • जिस दिन हवा कम चलती है उस दिन पवन फार्मों से बनने वाली बिजली का उत्पादन कम हो जाता है।
  • सूखे के कारण जल ऊर्जा के लिये आवश्यक जल की मात्रा में कमी आ जाती है।

संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा मिशन में भारत की बड़ी भूमिका की मांग

    हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा मिशन प्रक्रिया में शांति सैनिकों के रूप में बड़ा योगदान देने के उद्देश्य से निर्णय प्रक्रिया में बड़ी भूमिका की मांग की है।भारत ने कहा है कि आज्ञा-पत्र के निर्माण की प्रक्रिया में भारत जैसे देशों को जो कि लगातार अपनी सैनिकों की सेवाएँ देते आए हैं, लंबे समय के लिये बाहर रखना सही नहीं है।

क्या है भारत का तर्क?

  • भारत चाहता है कि आज्ञापत्र बनाए जाने के मौजूदा रूप पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा गौर किया जाए।
  • संयुक्त राष्ट्र के शांति रक्षा मिशन में बड़ी संख्या में सैनिकों और पुलिस का योगदान देने वाले देशों में भारत का नाम भी शामिल है।जबकि ज्ञापत्र को लागू करने के लिये सेनाएँ उपलब्ध कराने वाले देशों को इसे बनाने की प्रक्रिया में शामिल नहीं किया जाता है।

आगे की राह

  • शांति रक्षा मिशन के लिये आज्ञापत्र को लागू करने में भारत जैसे देशों की भूमिका तो होनी ही चाहिये, साथ में वैश्विक शांति बहाल करने हेतु महत्त्वपूर्ण नीतियों और सैद्धांतिक मुद्दों पर शांति सैनिक प्रदान करने वाले देशों तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बीच अधिक प्रभावी सहयोग सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है।
  • वर्तमान दौर में शांति अभियानों के दौरान कई जटिल चुनौतियाँ देखने को मिलती हैं। ऐसे में शांति कायम करने के लिये सुरक्षा परिषद के सदस्यों, शांति सैनिक योगदानकर्ता प्रमुख देशों और संयुक्त राष्ट्र सचिवालय के बीच एक राजनीतिक आम सहमति का बनना आवश्यक है।

संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • इसका आरंभ वर्ष 1948 में किया गया था और इसने अपने पहले मिशन में वर्ष 1948 में ही अरब-इज़रायल युद्ध के दौरान युद्ध विराम का पालन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा मिशन तीन बुनियादी सिद्धांतों का पालन करता है:
    • 1. शामिल सभी पक्षों की सहमति का ख्याल रखना।
      2. शांति व्यवस्था कायम रखने के दौरान निष्पक्ष बने रहना।
      3. आत्म-रक्षा और जनादेश की रक्षा के अलावा किसी भी स्थिति में बल-प्रयोग नहीं करना।
  • विदित हो कि वर्तमान में चार महाद्वीपों में 17 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान चलाए जा रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक विविध पृष्ठभूमि से संबंध रखते हैं। इसमें पुलिस, सैन्य और नागरिक कर्मियों को शामिल किया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिक बल ने 1988 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता था।

पाँच विशालकाय कृष्ण-छिद्र युग्मों की खोज
प्रस्तावना

    हाल ही में वैज्ञानिकों ने पाँच विशालकाय कृष्ण छिद्र युग्मों (supermassive black hole pairs) युग्मों की पहचान की है। इनमें से प्रत्येक कृष्ण-छिद्र युग्म का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से लाखों गुना अधिक है। विदित हो कि यह खोज गुरुत्वीय तरंगों की घटना को बेहतर तरीके से समझने में मददगार सिद्ध हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि जब दो आकाशगंगाएँ आपस में टकराती हैं तथा एक दूसरे से मिल जाती हैं तो उनके विशाल कृष्ण-छिद्र काफी नजदीक आ जाते हैं और कृष्ण-छिद्र युग्मों का निर्माण होता है।
  • विदित हो कि अब तक खगोलविदों द्वारा सम्पूर्ण ब्रह्मांड में एकल विशालकाय कृष्ण-छिद्र ही खोजे गए थे।
  • परन्तु इस खोज के दौरान भी इसके खगोलविदों ने यह पाया कि जब दो विशाल कृष्ण-छिद्र एक-दूसरे के नजदीक आए तो उनमें आकार में वृद्धि तो हुई परन्तु उन्हें अभी भी दोहरे विशालकाय कृष्ण-छिद्रों का विकसित होना कठिन प्रतीत हो रहा था।
  • जब भी शोधकर्त्ताओं को यह महसूस हुआ कि दो छोटी आकाशगंगाओं का विलय होने वाला है, उन्होंने आकाशगंगाओं की पहचान करने के लिये ‘स्लोन डिजिटल स्काई सर्वेक्षण’(Sloan Digital Sky Survey-SDSS) द्वारा प्राप्त किये गए आँकड़ों का उपयोग किया।
  • इस तकनीक की सहायता से खगोलविदों ने कम से कम एक विशाल कृष्ण-छिद्र युक्त सात ‘विलयित संरचनाओं’(merging systems ) को प्राप्त किया।
    इन पाँच संरचनाओं में एक्स किरण स्रोत के पृथक पाँच युग्म पाए गए, जिससे इस बात के प्रत्यक्ष प्रमाण मिले कि उनमें तेज़ गति से बढ़ते हुए विशाल कृष्ण-छिद्र हैं।
  • एक्स किरण उत्सर्जन बढ़ते हुए कृष्ण-छिद्रों की पहचान का एक नायाब तरीका है।
  • चन्द्र और अवरक्त अवलोकानों से प्राप्त एक्स रे डाटा से यह पता चला कि विशालकाय कृष्ण-छिद्रों के जलने से बड़ी मात्रा में धूल और गैसों का उत्सर्जन होता है।
  • एक्स किरणें और अवरक्त विकिरण कृष्ण-छिद्र युग्मों के चारों ओर उपस्थित गैस और धूल के अस्पष्ट बादलों को भेदने में सक्षम हैं।
  • आकाशगंगाओं के केंद्र में कृष्ण-छिद्रों का विलय काफी अधिक होता है। जब ये विशाल कृष्ण-छिद्र एक-दूसरे के समीप आते हैं, तो वे गुरुत्वीय तरंगें उत्पन्न करना प्रारंभ कर देते हैं।
  • सैकड़ों वर्षों में दोहरे विशालकाय कृष्ण-छिद्रों का यह एकाएक विलय से इन से भी बड़े कृष्ण-छिद्रों की खोज का मार्ग खोल देगा।

कृष्ण-छिद्र क्या हैं?

  • कृष्ण-छिद्र अंतरिक्ष में उपस्थित ऐसे छिद्र हैं जहाँ गुरुत्व बल इतना अधिक होता है कि यहाँ से प्रकाश का पारगमन नहीं होता। चूँकि इनसे प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता, अतः हमें कृष्ण छिद्र दिखाई नहीं देते, वे अदृश्य होते हैं।
  • हालाँकि विशेष उपकरणों युक्त अंतरिक्ष टेलीस्कोप की मदद से कृष्ण छिद्रों की पहचान की जा सकती है। ये उपकरण यह बताने में भी सक्षम हैं कि कृष्ण छिद्रों के निकट स्थित तारे अन्य प्रकार के तारों से किस प्रकार भिन्न व्यवहार करते हैं।

तेलंगाना का बाथूकम्मा त्योहार

  • बाथूकामा फूलों का त्योहार है जिसे मुख्यतः तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश की हिंदू महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
  • शालीवाहन कैलेंडर के अनुसार प्रतिवर्ष यह त्योहार नौ दिनों तक मनाया जाता है । इसकी शुरुआत भाद्रपद अमावस्या (इसे महालय अमावस्या अथवा पितृ अमावस्या भी कहा जाता है) से होती है, जबकि समाप्ति दुर्गाष्टमी को होती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार यह सितम्बर-अक्टूबर के महीने में मनाया जाता है।
  • बाथूकम्मा त्योहार शरद ऋतु के आगमन का संकेत देता है।
  • यह तेलंगाना की सांस्कृतिक आस्था को प्रदर्शित करता है। बाथूकम्मा सुंदर फूलों का ढेर होता है, जिन्हें गोपुरम मंदिर की आकृति में सजाया जाता है। इनमें से अधिकांश फूलों का चिकित्सकीय महत्त्व भी होता है। तेलुगु में बाथूकम्मा का अर्थ माँ देवी का जीवंत होना (Mother Goddess come Alive) है। इन दिनों जीवन-दात्री ’(Life Giver) देवी गौरी की पूजा बाथूकम्मा के रूप में की जाती है।

जीवित कोशिकाओं में विद्यमान विसंगतियों को दूर करने हेतु नैनो-मशीनों का निर्माण
प्रस्तावना

    हाल ही में एक युवा जीव-विज्ञानी के नेतृत्व में कानपुर स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने ऐसी नैनो-मशीनों का निर्माण किया है जो ‘जीवित कोशिकाओं’ (living cells) में विद्यमान विसंगतियों को दूर करने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं। विदित हो कि इस प्रकार की विसंगतियों से ही प्रायः रोग होते हैं। अतः ये मशीनें निकट भविष्य में अत्यधिक लाभकारी सिद्ध होंगी।

प्रमुख बिंदु

  • दरअसल, ये नैनो-मशीनें एंटीबॉडी के टुकड़ों से बनाई गई हैं तथा ये जीवित कोशिका के अंदर होने वाली सांकेतिक घटनाओं (signalling events ) का पता लगाती हैं।
  • इन्हें इस तरीके से डिज़ाइन किया जाता है कि ये सांकेतिक प्रक्रिया के एक भाग का तो नियमन करती हैं जबकि दूसरे को स्पर्श किये बिना ही छोड़ देती हैं।
  • वस्तुतः इस तकनीक में कुछ ऐसे रोगों जैसे-टाइप 1 मधुमेह और रेटिनाइटिस पिगमेंटोसा (retinitis pigmentosa) का उपचार करने की क्षमता हो सकती है, जिनका उपचार अन्य तकनीकों के माध्यम से नहीं किया जा सकता। विदित हो कि ये ऐसे आनुवंशिक विकार हैं जिनके परिणामस्वरूप दृष्टिबाधित हो जाती है।
  • वैज्ञानिकों ने दर्शाया कि विशेष रूप से तैयार किये गए एंटीबॉडी के ये टुकड़े कोशिका के भीटर मौजूद उन प्रोटीनों के एक वर्ग के कार्यों का पता लगाने में सक्षम हैं, जिन्हें ‘बीटा-अरेस्टिन’((beta-arrestin) कहा जाता है।
  • ध्यातव्य है कि बीटा-अरेस्टिन इसलिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे रेसिप्टर ( Receptor) के परिवार जिन्हें ‘जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर’ (G-Protein-Coupled Receptors (GPCR) कहा जाता है, के कार्यों का नियमन करते हैं। ये जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर प्रत्येक जीवित कोशिका (living cell) की सतह पर पाए जाते हैं।
  • आई.आई.टी. कानपूर के शोधकर्त्ताओं के अलावा लखनऊ स्थित केन्द्रीय दवा अनुसंधान संस्थान (Central Drug Research Institute) और अमेरिका तथा कनाडा के कुछ विश्वविद्यालयों से उनके सहयोगी भी इस टीम का हिस्सा थे।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, बीटा-अरेस्टिन जीपीसीआर के सामान्य कार्यों (मुख्यतःसामान्य कोशिकाओं में) में अवरोध उत्पन्न करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • जीपीसीआर प्रोटीनों (GPCR proteins) से जुड़ा हुआ बीटा-अरेस्टिन जीपीसीआर प्रोटीनों को कोशिकाओं के अन्दर धकेलता है तथा प्रोटीनों के दूसरे वर्ग (जिन्हें क्लैथरिन कहा जाता है) के साथ सम्मिश्रण (complex) का निर्माण करता है।
  • यह पाया गया कि एंटीबॉडी के टुकड़े बीटा-अरेस्टिन (beta-arrestin) प्रोटीनों को क्लैथरिन(clathrin) से जुड़ने से रोकते हैं और इस प्रकार यह रेसिप्टर (receptors) को कोशिका की सतह पर लम्बे समय तक बनाए रखने में सहायता करते हैं, जहाँ वे अपना सामान्य कार्य करना जारी रखते हैं। परन्तु यहाँ पर ये एंटीबॉडी के टुकड़े बीटा-अरेस्टिन-जीपीसीआर जटिल को क्लैथरिन के साथ जुड़ने नहीं देते अथवा उनके जुड़ाव में अवरोध उत्पन्न करते हैं। अतः यह रेसिप्टर को नष्ट करने का एक अल्पमार्ग है।

शारीरिक रेसिप्टर क्या हैं?

    रेसिप्टर हमारे शरीर की प्रत्येक ‘शारीरिक प्रक्रिया’ का केंद्र बिंदु हैं। उदाहरण के लिए, हम वस्तुओं को दृश्य रूप में केवल तभी देखते हैं, जब प्रकाश के कण अथवा फोटोन रोडोपसिन (rhodopsin) नामक अणुओं पर पड़ते हैं। ध्यान देने योग्य है कि जीपीसीआर रेसिप्टर रेटिना में उपस्थित होते हैं। इसके अतिरिक्त जब नाक की कोशिकाओं के रेसिप्टर सक्रिय होते हैं तो हमें गंध का एहसास होता है, जबकि खतरे का आभास होता है तो हम उस स्थान को छोड़ देते हैं। इसका कारण यह है कि कोशिकाओं में उपस्थित विभिन्न प्रकार के जी प्रोटीन-कपल्ड रिसेप्टर हार्मोन्स के रूप में रासायनिक संकेत प्राप्त करते हैं।

इंफ्लुएंजा प्रकोप
प्रस्तावना

  • आधिकारिक आँकड़ों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उक्त दोनों वर्षों की तुलना में वर्ष 2016 अपेक्षाकृत एक अधिक सौम्य वर्ष रहा। इस वर्ष मात्र 265 लोगों की एच1एन1 वायरस के कारण मौत हुई।
  • हालाँकि इन आधिकारिक आँकड़ों के साथ समस्या यह है कि ये केवल एच1एन1 वायरस पर आधारित डाटा ही प्रस्तुत करते हैं। एच1एन1 वायरस के संबंध में आँकड़े एकत्रित करने का काम 2009 से आरंभ किया गया, हालाँकि इससे पूर्व भी देश में महामारी का प्रकोप जारी था।

पूर्व की स्थिति क्या थी?

  • भारत में 2009 से पहले इंफ्लुएंजा एच3एन2 और इंफ्लुएंजा बी वायरस के रूप में मौजूद था।
  • इनमें एच3एन2 वायरस एक ऐसा वायरस है जो एच1एन1 की ही भाँति बड़ा प्रकोप उत्पन्न करने में सक्षम है, तथापि भारत में एच3एन2 के संबंध में उस स्तर पर कार्यवाही नहीं की गई, जैसा कि एच1एन1 के संबंध में की जाती है।

वास्तविक स्थिति

  • उल्लेखनीय है कि मणिपाल सेंटर फॉर वायरल रिसर्च (कर्नाटक) में तीव्र ज्वर संबंधी बीमारियों हेतु स्थापित एक निगरानी परियोजना द्वारा यह पाया गया है कि भारत के 10 राज्यों के ग्रामीण इलाकों में लगभग 20% बुखार इंफ्लुएंजा के कारण होते हैं।
  • अक्सर इस प्रकार के बुखार को “अपरिवर्तनीय” और “रहस्य बुखार” के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • ध्यातव्य है कि जिन वर्षों में एच1एन1 वायरस का प्रकोप कम होता है, उन वर्षों में इन क्षेत्रों में एच3एन2 और इंफ्लुएंजा बी का परिसंचरण बहुत अधिक बढ़ जाता है।
  • इस जानकारी से यह स्पष्ट होता है कि न केवल भारत की निगरानी प्रणाली बहुत अधिक कमज़ोर है, बल्कि इसके अंतर्गत इंफ्लुएंजा के प्रभाव को बहुत कमतर आँका जाता है।
  • मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Massachusetts Institute of Technology) के शोधकर्त्ताओं के अनुसार, भारत जैसे बड़े देश द्वारा अपने आकार और आबादी के हिसाब से वैश्विक ओपेन-एक्सेस डाटाबेस (global open-access databases) हेतु एच1एन1 के आनुवंशिक अनुक्रमों (H1N1 genetic sequences) की एक बहुत छोटी संख्या प्रस्तुत की गई है।
  • किसी भी वायरस का अनुक्रम बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्योंकि यह आनुवंशिक सामग्री में उत्परिवर्तन का पता लगाने में सक्षम होता है, जो मानव प्रतिरक्षा प्रणाली को वायरस के प्रभाव से सुरक्षित रखता है।
  • क्योंकि, भारत वायरल जीनोम का एक बड़ा नमूना अनुक्रमित नहीं करता है, यही कारण है कि यह वायरस के संबंध में स्थितिभेद करने की स्थिति में ही नहीं होता है।
  • स्पष्ट रूप से यह वायरस की घातकता में परिवर्तन होने संबंधी कोई भी व्याख्या करने में असक्षम होता है। जिसके परिणामस्वरूप परिस्थितियाँ न केवल भयावह बन जाती हैं, बल्कि इससे देश को बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है।

ज़िका और डेंगू के निदान हेतु एक त्वरित परीक्षण
प्रस्तावना

    वैज्ञानिकों की एक अंतर्राष्ट्रीय टीम (भारतीय शोधकर्त्ताओं सहित) द्वारा ज़िका और डेंगू के वायरस के निदान के लिये एक कम लागत वाला तीव्र नैदानिक परीक्षण विकसित किया गया है। इसके साथ-साथ वैज्ञानिकों द्वारा डेंगू के चार सीरोटाइप वायरसों को भी विभेदित किया गया है।

प्रमुख बिंदु

  • विदित हो कि वर्तमान में उपलब्ध कोई भी तीव्र परीक्षण डेंगू के चारों सीरोटाइप वायरसों के मध्य विभेदन करने में सक्षम नहीं है।
    डेंगू के मामले में डायग्नोस्टिक टेस्ट लगभग 76-100% संवेदनशील और विशिष्ट होते हैं, जबकि ज़िका के मामले में इनकी संवेदनशीलता 81% और विशिष्टता 86% होती है।
  • ऐसे बहुत से नैदानिक परीक्षण हैं जो ज़िका और डेंगू संक्रमण के बीच स्पष्ट विभेदन नहीं कर सकते हैं, परंतु यह नया परीक्षण इन दोनों प्रकार के वायरसों के संक्रमण के बीच भेद करने की लगभग 100% क्षमता रखता है।
  • उल्लेखनीय है कि इस परीक्षण से संबंधित परिणामों को साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन (Science Translational Medicine) नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा मोनोक्लोनल एंटीबॉडी उत्पन्न करने के लिये चूहों में ज़िका और डेंगू वायरस द्वारा उत्पादित विशिष्ट फ्लैविवायरस नॉनस्ट्रक्चरल-1 (एनएस-1) प्रोटीन को इंजेक्ट किया गया।
  • इसके पश्चात् उनके द्वारा एंटीबॉडी के जोड़े की पहचान की गई, जो न केवल डेंगू के सेरोटाइप एनएस-1 प्रोटीन के साथ-साथ ज़िका एनएस-1 प्रोटीन के विषय में पता लगा सकता है, बल्कि दोनों के मध्य अंतर भी कर सकता है।
  • वैज्ञानिकों द्वारा प्रत्येक एंटीबॉडी को दो अलग-अलग जगहों पर क्रोमैटोग्राफी पेपर की एक पट्टी पर लेपित किया गया। तत्पश्चात् इन एंटीबॉडीज़ में से एक को सोने के नैनोकणों से संबद्ध किया गया।
  • जब किसी रोगी के सीरम के नमूने को (जहाँ एंटीबॉडी चिन्हित होती है) क्रोमैटोग्राफी पेपर से संबद्ध किया जाता है, तो सीरम में मौजूद एंटीजेन पहले एंटीबॉडी से बंध जाता है।
  • चूँकि यह क्रोमैटोग्राफी पेपर होता है, इसलिये एंटीबॉडी से संबद्ध एंटीजेन फैल जाता है और दूसरे एंटीबॉडी के संपर्क में आ जाता है।
  • दूसरा एंटीबॉडी भी कोलोडायल समुच्चय (Collodial Aggregates) के निर्माण हेतु अग्रणी एंटीजन को बांधने का काम करता है तथा एक गुलाबी स्थान का निर्माण करता है। जैसे ही दूसरा एंटीबॉडी अधिकृत एंटीजन के साथ बंधता है, उसके 20 से 30 मिनट के भीतर पट्टी पर एक गुलाबी स्थान दिखाई देने लगता है।
  • वस्तुतः इस गुलाबी स्थान की उपस्थिति या तो ज़िका वायरस या डेंगू वायरस की उपस्थिति के संबंध में सकारात्मक चिन्ह दर्शाती है। जबकि एक सीरोटाइप परीक्षण के मामले में यह संबंधित डेंगू सीरोटाइप वायरस को इंगित करती है।
  • चूँकि प्रत्येक जोड़ी एक विशिष्ट सीरोटाइप को प्रदर्शित करती है, इसलिये डेंगू सेरोटाइप के परीक्षण के लिये चार स्ट्रिप्स तथा ज़िका के परीक्षण के नमूने के लिये एक स्ट्रिप की आवश्यकता है।
  • इसके अतिरिक्त वैज्ञानिकों द्वारा एक पैन-डेंगू स्ट्रिप को भी विकसित किया गया, जो मौजूदा परीक्षण किटों के विपरीत ज़िका एनएस-1 के साथ क्रॉस-रिएक्शन किये बिना डेंगू वायरस की सकारात्मकता को इंगित करती है। हालाँकि यह स्ट्रिप चार सीरोटाइपस के बीच अंतर करने में सक्षम नहीं है।

आईबीबीआई ने आईबीबीआई(सूचना उपयोगिता) अधिनियम 2017 अधिसूचित किया

  • आईबीबीआई ने 31 मार्च, 2017 को आईबीबीआई (सूचना उपयोगिता) (संशोधन) अधिनियम, 2017 अधिसूचित किया था। इस अधिनियम में व्यवस्था की गई है कि कोई भी व्यक्ति किसी सूचना उपयोगिता की प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी का 10 प्रतिशत से अधिक अथवा इसमें मतदान का अधिकार नहीं रख सकता, जबकि कुछ विशेष व्यक्तियों को 25 प्रतिशत तक की इजाजत दी गई है।
  • इसमें व्यवस्था की गई है कि व्यक्ति पंजीकरण के बाद तीन वर्ष की अवधि समाप्त होने तक प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी का 51 प्रतिशत अथवा मतदान का संपूर्ण अधिकार रख सकता है। आईबीबीआई ने आईबीबीआई (सूचना उपयोगिता) अधिनियम, 2017 में 29 सितंबर, 2017 को संशोधन किया।
  • संशोधित अधिनियम के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने पंजीकरण की तारीख से तीन वर्ष तक सूचना उपयोगिता की 51 प्रतिशत प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी अथवा मतदान का संपूर्ण अधिकार स्वयं अथवा व्यक्तियों की सहमति से रख सकता है।
  • इसके अलावा एक भारतीय कंपनी, (i) जो भारत में स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध है अथवा (ii) जहां कोई व्यक्ति, प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से, स्वयं अथवा व्यक्तियों की सहमति से प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी का 10 प्रतिशत से अधिक रखता है, पंजीकरण की तारीख से तीन वर्ष तक सूचना उपयोगिता की प्रदत्त इक्विटी शेयर पूंजी का शत प्रतिशत अथवा मतदान का संपूर्ण अधिकार रख सकता है।
  • तथापि ये संशोधित प्रावधान 30 सितंबर, 2018 से पहले पंजीकृत सूचना उपयोगिता के संबंध में उपलब्ध होंगे। संशोधन में यह आवश्यक किया गया है कि किसी सूचना उपयोगिता के आधे से अधिक निदेशक भारतीय नागरिक और भारत के निवासी होने चाहिए।

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