अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के लिए संयुक्त राष्ट्र की मान्यता
संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन ( International Solar Alliance ) को मान्यता प्रदान की गई है। इसका लाभ यह होगा कि संयुक्त राष्ट्र के दायरे में आने वाले देश संगठन के कार्यों में तेज़ी लाने के साथ-साथ इसके सदस्य बनने के लिये आगे आएंगे।
इससे आइएसए द्वारा बनाई जा रही योजनाओं को लागू कराना भी आसान हो जाएगा। यदि दो देशों के बीच किसी भी विषय को लेकर विवाद होगा तो मामला अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय तक में ले जाया जा सकेगा।
विश्व बैंक सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये तेज़ी से आगे आएगा। इसे संयुक्त राष्ट्र से मान्यता मिलने के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि ऐसे देश जो अभी तक इसके सदस्य नहीं बने हैं, जल्द ही वे भी सदस्य बनने के लिये तेज़ी से आगे आएंगे।
पृष्ठभूमि
- आईएसए की स्थापना की पहल भारत द्वारा की गई थी। इसकी शुरुआत संयुक्त रूप से पेरिस में 30 नवम्बर, 2015 को संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन के दौरान कोप-21 से अलग भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्राँस के तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा की गई थी।
- आईएसए के अंतरिम सचिवालय ने 25 जनवरी, 2016 को काम करना शुरू कर दिया था।
- इसके तहत कृषि के क्षेत्र में सौर ऊर्जा का प्रयोग, व्यापक स्तर पर किफायती ऋण, सौर मिनी ग्रिड की स्थापना जैसे कार्यक्रम प्रारंभ किये गए हैं।
- इन कार्यक्रमों से सदस्य देशों में सौर ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करना एवं आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिलेगी।आईएसए संगठन का सचिवालय हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान के परिसर में स्थापित किया गया है।
ग्रामीण भारत में ग्रिड कनेक्टेड सौर संयंत्रों हेतु कुसुम (KUSUM) योजना
सन्दर्भ
- सरकार ग्रामीण भारत के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिए ‘किसान उर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (KUSUM) योजना’ शुरू करने की प्रक्रिया में है। इस योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में ग्रिड से जुड़े सौर संयंत्रों की स्थापना की जाएगी।
- किसान उर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान (KUSUM) योजना के तहत 10,000 मेगावाट सौर संयंत्र का निर्माण किया जएगा और 1.75 मिलियन ऑफ-ग्रिड कृषि सौर पंप प्रदान किये जाएँगे।
उद्देश्य
किसान उर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों की आय में वृद्धि का है क्योंकि वे अपनी अतिरिक्त बिजली को अपनी जमीन पर स्थित सौर संयंत्रों द्वारा निर्मित मुख्य ग्रिड में बेच सकते हैं।
कुसुम योजना के बारे में
- योजना के तहत देश के 3 करोड़ सिंचाई पम्पों को सौर उर्जा से चलाया जायेगा।
- किसानों को इस लागत का केवल 10 प्रतिशत ही देना होगा।
- सरकार इस योजना के लिए लगभग 45 हज़ार करोड़ रुपये बैंक ऋण के रूप में जुटाएगी ।
- योजना से 28 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा ।
- योजना से किसान दोहरा लाभ उठा सकेंगे. पहला इससे सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली मिलेगी. दूसरा, किसान अतिरिक्त बिजली बनाकर ग्रिड को भेजेंगे तो उसकी कीमत भी किसानों को दी जाएगी ।
- योजना के पहले चरण में डीज़ल से चल रहे 17.5 लाख सिंचाई पम्पों को सौर उर्जा से चलाया जायेगा ।
कुसुम योजना के लाभ
- सौर उर्जा से चलने पर पम्पों से लंबे समय तक सिंचाई हो सकेगी तथा फसलों की पैदावार सुधरेगी।
- देश में डीज़ल की खपत कम होगी।
- पर्यावरण पर डीज़ल से पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव में भी कमी आएगी।
- देश में अतिरिक्त मेगावाट बिजली पैदा होगी।
- किसानों की बिजली की बचत हो सकेगी।
ई कचरा प्रबंधन कानून में किया गया संशोधन
सन्दर्भ
सरकार ने देश में ई कचरे के पर्यावरण अनुकूल प्रभावी प्रबंधन के लिए ई कचरा नियमों में संशोधन किया है। नियमों में बदलाव के तहत उत्पादक जवाबदेही विस्तार ईपीआर की व्यवस्थाओं को पुन परिभाषित किया गया है और इसके तहत बिक्री शुरु करने वाले ई उत्पादकों के लिए ई कचरा संग्रहण के नए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। देश में ई कचरा निबटान को सुव्यवस्थित बनाने के लिए ई कचरे के पुनर्चक्रण या उसे विघटित करने के काम में लगी इकाइयों को वैधता प्रदान करने तथा उन्हें संगठित करने के इरादे से नियमों में बदलाव किया गया है।
मुख्य तथ्य
1 अक्तूबर 2017 से ई कचरा संग्रहण के नए निधार्रित लक्ष्य प्रभावी माने जाएंगे। ई कचरे का संग्रहण लक्ष्य 2017-18 के विभिन्न चरणों में उत्पन्न किए गए कचरे के वजन का 10 फीसदी होगा जो 2023 तक प्रतिवर्ष 10 फीसदी के हिसाब से बढ़ता जाएगा। यह लक्ष्य वर्ष 2023 के बाद कुल उत्पन्न कचरे का 70 फीसदी हो जाएगा।
आरओएच के तहत हानिकारक पदार्थों से संबधित व्यवस्थाओं से उत्पादों की जांच का खर्च सरकार वहन करेगी अगर उत्पाद आरओएच की व्यवस्थओं के अनुरूप नहीं हुए तो जांच का खर्च उत्पादक को वहन करना होगा।
खुद को पंजीकृत कराने के लिए उत्पादक जवाबदेही संगठनों को नए नियमों के तहत कामकाज करने के लिए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के समक्ष आवेदन करना होगा।
उत्पादों की औसत आयु समय समय पर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा निर्धारित की जाएगी। किसी उत्पादक के बिक्री परिचालन के वर्ष उसके उत्पादों के औसत आयु से कम होंगे तो ऐसे ई उत्पादकों के लिए ई कचरा संग्रहण के लिए अलग लक्ष्य निर्धारित किए जायेंगे ।
ई कचरा
ई कचरा का आशय किसी वैद्युत या इलेक्ट्रानिक उपकरण से है जो टूटा-फूटा, पुराना,खराब या बेकार होने के कारण फेंक दिया गया हो। इसमें से कुछ चीजें री-प्रोसेस् की जा सकतीं हैं अधिसूचना जीएसआर 261 (ई) के तहत 22 मार्च, 2018 को ई-वेस्ट प्रबंधन नियम 2016 को संशोधित किया गया है।
कड़कनाथ मुर्गे का GI टैग मध्य प्रदेश को मिला
कड़कनाथ मुर्गे का GI टैग चेन्नई के भौगोलिक संकेतक पंजीयन कार्यालय ने मध्य प्रदेश को दे दिया। कड़कनाथ मुर्गा मध्य प्रदेश के झाबुआ और अलीराजपुर ज़िलों में पाया जाता है। कई दिनों से इसकी प्रजाती को लेकर मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बीच विवाद चल रहा था। दोनों ही राज्यों ने इस प्रजाति के मुर्गे के जीआई टैग को लेकर अपना-अपना दावा पेश किया था। साल 2012 में मप्र ने GI रजिस्ट्री ऑफिस चेन्नई में कड़कनाथ के लिए क्लेम किया था वहीं साल 2017 में छत्तीसगढ़ ने अपना दावा पेश किया था। मध्य प्रदेश का दावा था है कि झाबुआ ज़िले में कड़कनाथ मुर्गे की उत्पत्ति हुई है, जबकि छत्तीसगढ़ का दावा था कि कड़कनाथ को प्रदेश के दंतेवाडा ज़िले में अनोखे तरीके से पाला जाता है और यहां उसका संरक्षण और प्राकृतिक प्रजनन होता है।
“कड़कनाथ”
कड़कनाथ चिकन नस्ल अपने काले रंग के पंखों के कारण अद्वितीय है। पौष्टिकता औऱ स्वाद कड़कनाथ की सबसे खास बात है। कड़कनाथ में 25-27 फीसदी प्रोटीन होता है। आम चिकन में यह 18 से 20 फीसदी होता है। वहीं दूसरे चिकन की तुलना में इसमे फैट भी कम होता है। ये मुर्गा विटामिन-बी-1, बी-2, बी-6, बी-12, सी, ई, केल्शियम, फास्फोरस और आयरन से भरपूर होता है।
‘जियोग्राफ़िकल इंडिकेशंस टैग’
‘जियोग्राफ़िकल इंडिकेशंस टैग’ या भौगोलिक संकेतक का मतलब ये है कि कोई भी व्यक्ति, संस्था या सरकार अधिकृत उपयोगकर्ता के अलावा इस उत्पाद के मशहूर नाम का इस्तेमाल नहीं कर सकती। वर्ल्ड इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइज़ेशन के अनुसार जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन ये बताता है कि वह उत्पाद एक ख़ास क्षेत्र से ताल्लुक़ रखता है और उसकी विशेषताएं क्या हैं। साथ ही उत्पाद का आरंभिक स्रोत भी जियोग्राफ़िकल इंडिकेशन से तय होता है।
वैश्विक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र में भारत 37 वें स्थान पर
2017 में वैश्विक स्टार्टअप इकोसिस्टम में भारत ग्लोबल स्टार्टअप इकोसिस्टम मैप स्टार्टअपब्लिंक द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 125 देशों में 37वें स्थान पर था. यह एक हजार स्टार्टअप ब्लॉकों का एक स्टार्टअप इकोसिस्टम मैप है जिसमें हजारों रजिस्टर्ड स्टार्टअप, कोवर्किंग स्पेस और एक्सलरेटर शामिल होते हैं. इस सूची में, स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की ताकत और गतिविधि मापने में, यूनाइटेड किंगडम के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका सबसे ऊपर था.
मुख्य तथ्य
- 2017 में ग्लोबल स्टार्टअप इकोसिस्टम में शीर्ष 5 देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका (1), यूनाइटेड किंगडम (2), कनाडा (3), इज़राइल (4) और जर्मनी (5) हैं।
- भारत की रैंक दर्शाती है कि व्यवसाय करने , स्टार्टअप नीतियों, और जटिल कर अनुपालन के मामले में भारत को अधिक काम करना होगा। भारतीय स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र को अभी भी कुछ सुधार देखने को मिल रहे है, जो स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र की परिपक्वता की माप के लिए महत्वपूर्ण उपाय के रूप में देखा जाता है।
- भारत लैटिन अमेरिकी देशों जैसे मेक्सिको और चिली के नीचे क्रमशः 30 वें और 33 वें स्थान पर है । बेंगलुरु, नई दिल्ली और मुंबई को वैश्विक रैंकिंग में शीर्ष शहरों में सूचीबद्ध किया गया है ।
पश्चिमी घाट में नई वनस्पति प्रजाति की खोज
पश्चिमी घाट जैव विविधता हॉटस्पॉट में भारत के यूनिवर्सिटी कॉलेज के शोधकर्त्ताओं ने एक नई वनस्पति प्रजाति की खोज की है। पोनमुडी में खोजे गए, एक छलनी के रूप में वर्गीकृत, इस घास जैसे पौधे का नाम फिमब्रिस्टिलिस अगस्थ्यमलेन्सिस रखा गया है। पोनमुडी पहाड़ियों में अगस्थ्यामाला बायोस्फियर रिज़र्व के भीतर दलदली घास के मैदानों में इस प्रजाति की खोज की गई है।
मुख्य तथ्य
- केरल राज्य परिषद् विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पर्यावरण के महिला वैज्ञानिक विभाग द्वारा वित्तपोषित एक परियोजना का यह सर्वेक्षण हिस्सा था।
- फाइटोटाक्सा में यह शोध प्रकाशित किया गया है जो कि वनस्पति प्रणालीगत और जैव विविधता की एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका है।
- शोधकर्त्ताओं ने आईयूसीएन मापदंड के अनुसार, इस प्रजाति को ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ के रूप में संरक्षण प्रदान करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट के अनुसार इस प्रजाति की वन्य चराई की अत्यधिक संभावना है।
- यह साइप्रसेई परिवार के अंतर्गत आती है।
- 122 प्रजातियों द्वारा भारत में इस जीनस का प्रतिनिधित्व किया जाता है। 87 प्रजातियाँ पश्चिमी घाटों में पाई जाती हैं। ज्ञात साइप्रसेई प्रजातियों में से कई औषधीय पौधे हैं जिन्हें चारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
विश्व हीमोफीलिया दिवस 17
सन्दर्भ
पूरे विश्व में 17 अप्रैल को विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है हीमोफीलिया तथा अन्य आनुवंशिक खून बहने वाले विकारों के बारे में जागरूकता बढाने हेतु इस दिवस को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व हीमोफीलिया दिवस का विषय ‘Sharing Knowledge Makes Us Stronger’ है।
हीमोफीलिया
यह एक प्रकार की आनुवंशिक बीमारी है, जो बच्चों में उनके माता-पिता से पहुंचती है. इसको दो वर्गों हीमोफीलिया ए तथा हीमोफीलिया बी में बांटा गया है। हीमोफीलिया ए में फैक्टर-8 की मात्रा बहुत कम या शून्य हो जाती है। हीमोफीलिया बी में फैक्टर-9 की मात्रा शून्य या बहुत कम होने पर होता है। हीमोफीलिया ए से पीड़ित लगभग 80 प्रतिशत मरीज होते हैं। जबकि,इससे कम मामले हीमोफीलिया बी के सामने आते हैं.इससे खून का थक्का नहीं बनता है।शरीर के अंदर के अंग जैसे लिवर, किडनी, मसल्स से भी खून बहने लगता है।
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