बलबन (1265-1287 ई०)

बलबन (1265-1287 ई०)

  • बलबन ने 20 वर्ष तक वजीर की हैसियत से तथा 20 वर्ष तक सुल्तान के रूप में शासन किया।
  • बलबन दिल्ली सल्तनत का एक ऐसा व्यक्ति था जो सुल्तान न होते हुए भी सुल्तान के छत्र का उपयोग करता था। वह पहला शासक था। जिसने सुल्तान के पद और अधिकारों के बारे में विस्तृत रूप से विचार प्रकट किये। 
  • उसने सुल्तान की प्रतिष्ठा को स्थापित करने के लिए ‘रक्त एवं लौह की नीति’ अपनाई।
  • बलबन के राजत्व सिद्धान्त की दो मुख्य विशेषताएं थी-
  1. सुल्तान का पद ईश्वर के द्वारा प्रदान किया हुआ होता है।
  2. सुल्तान का निरंकुश होना आवश्यक है।
  • उसके अनुसार ‘सुल्तान पृथ्वी पर ईश्वर का प्रतिनिधि है और उसका स्थान केवल पैगम्बर के पश्चात है।’
  • बलबन अपने को ‘फिरदौसी के शाहनामा’ में वर्णित ‘अफरासियाब वंशज’ तथा शासन को ईरानी आदर्श के रूप में सुव्यवस्थित किया ।
  • बलबन ने उन सभी जागीरों की जाँच कराई जो विभिन्न व्यक्तियों को सैनिक सेवा के बदले शासकों द्वारा दी जाती थी।
  • जागीरों से आय एकत्र करने का अधिकार सरकारी कर्मचारियों को दिया गया और जागीदारों को नकद धन देने के आदेश दिये गये। किन्तु सैनिकों को वेतन के स्थान पर पहले की भाँति भूमि प्राप्त होती रही ।
  • उसके समय में वजीर के पद का महत्व घट गया और नाइब जैसा कोई अधिकारी न रहा अर्थात् नाइब के पद को खत्म कर दिया।
  • उसने ऐसे सैनिकों को जो सेवा के योग्य नहीं रह गये थे, पेंशन देकर सेवा मुक्त किया।
  • बलबन ने ‘चालीसा दल’ का दमन किया।
  • बलबन के शासन की सफलता का मुख्य श्रेय उसका गुप्तचर विभाग था। 
  • गुप्तचर विभाग की स्थापना सामन्तों की गतिविधियों पर निगरानी हेतु की गई थी। 
  • मंगोलों का मुकाबला करने के लिए उसने एक सैन्य विभाग ‘दीवाने अर्ज’ की स्थापना की।
  • उसने सिजदा और पाबोस की प्रथा को अपने दरबार में फिर से शुरू करवाया जो मूलतः ईरानी थी और जिन्हें गैर इस्लामी समझा जाता था। इसके अतिरिक्त उसने ईरानी त्योहार नौरोज प्रथा भी आरम्भ की।
  • 1279 ई० में बंगाल के सूबेदार तुगरिल खाँ ने विद्रोह किया यह प्रथम गुलाम सरदार का विद्रोह था। तुगरिल ने मुगीसुद्दीन की उपाधि ग्रहण की और अपने नाम के सिक्के चलाए तथा खुतबा पढ़वाया। बाद में बलबन ने विद्रोह को दबाया तथा विद्रोहियों को मृत्यु दण्ड दिया।
  • उत्तर पश्चिमी सीमाओं पर मंगोलों के आक्रमण से बचने के लिए एक श्रृंखला का निर्माण कराया तथा अपने ज्येष्ठ पुत्र शाहजादा मुहम्मद को वहाँ का शासन सौंपा, किन्तु मंगोलों के एक प्रबल आक्रमण का सामना करते हुए वह मारा गया।
  • विख्यात कवि अमीर खुसरो जिसका उपनाम तुतिए-हिन्द (भारत का तोता) तथा अमीर हसन ने अपना साहित्यिक जीवन शाहजादा मुहम्मद के समय शुरू किया था।
  • बलबन की मृत्यु के बाद उसका पौत्र कैकुबाद उसका उत्तराधिकारी हुआ जो एक अत्यन्त विलासी एवं कामुक व्यक्ति था। परिणाम स्वरूप सम्पूर्ण प्रशासन अराजकता से ग्रस्त हो गया और राजदरबार अमीरों की उच्च आकांक्षाओं एवं संघर्षों की गिरफ्त में आ गया।
  • अमीरों के एक गुट के नेता आरिज-ए-मुमालिक मलिक फिरोज (जलालुद्दीन) कैकुबाद की हत्या करके राजगद्दी पर स्वयं अधिकार कर लिया। इस प्रकार दिल्ली सल्तनत में गुलाम वंश का अंत हो गया।
  • डा०ए० वी० हबीबुल्ला ने बलवन के शासनकाल को सुदृढ़ता का युग कहते हुए उसके लिए ‘Consalidation’ शब्द का प्रयोग किया।

COMMENTS (No Comments)

LEAVE A COMMENT

Search

Verified by ExactMetrics