कुतुबुद्दीन का दामाद व उत्तराधिकारी इल्तुतमिश, इल्बारी तुर्क था।
इल्तुतमिश ही दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था। कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु के समय वह बदायूँ का सूबेदार (गवर्नर) था।
इल्तुतमिश ने सुल्तान के पद को वंशानुगत बनाया।
मुहम्मद गोरी ने 1206 ई० में खोखरों के विद्रोह के समय इल्तुतमिश की असाधारण योग्यता के कारण उसे दासता से मुक्त कर दिया।
1229 ई० में उसे बगदाद के अब्बासी खलीफा से मान्यता का अधिकार पत्र प्राप्त हुआ, जिससे सुल्तान के रूप में उसकी स्वतन्त्र स्थिति एवं दिल्ली सल्तनत को औपचारिक मान्यता प्राप्त हुई।
1234-35 ई० में तुर्कों ने भिलसा के एक प्राचीनतम् हिन्दू मंदिर तथा उज्जैन के महाकाल के मंदिर को लूटा और नष्ट कर दिया।
इल्तुतमिश के समय अवध में पियूँ का विद्रोह हुआ था।
विरोधी सरदारों को परास्त कर इल्तुतमिश ने अपने वफादार गुलाम अमीरों (सरदारों) की एक टुकड़ी रखी जिसे ‘तुर्कान-ए-चहलगनी’ या ‘ चालीसा’ (चालीस अमीरों का समूह) कहा जाता था।
1221 ई० में दिल्ली सल्तनत को चंगेज खाँ के आक्रमण का खतरा उत्पन्न हो गया था जब वह ख्वारिज्म के अंतिम शाह जलालुद्दीन मांगबरनी का पीछा करता हुआ सिन्ध तक पहुँच गया। जलालुद्दीन ने इल्तुतमिश से शरण माँगी जिसे इल्तुतमिश ने अस्वीकार कर दिया और इस प्रकार नवोदित तुर्की साम्राज्य को बचा लिया।
1230-31 ई० इल्तुतमिश ने बंगाल पर पूर्ण रूप से अधिकार कर लिया।
सिक्कों पर इल्तुतमिश ने अपना उल्लेख खलीफा के प्रतिनिधि के रूप में कराया। इसने सिक्कों पर टकसाल का नाम लिखवाने की परम्परा शुरू की।
ग्वालियर की विजय के बाद इल्तुतमिश ने अपनी पुत्री रजिया का नाम सिक्कों पर अंकित करवाया।
उसने मिनहाजुद्दीन सिराज तथा मलिक ताजुद्दीन को संरक्षण प्रदान किया।
उसने लाहौर के स्थान पर दिल्ली को राजधानी बनाई।
उसने इक्ता की शासन व्यवस्था और सुल्तान की सेना के निर्माण का विचार दिल्ली सल्तनत को प्रदान किया।
इल्तुतमिश ने इक्ता संस्था का प्रयोग भारतीय समाज की सामन्तवादी व्यवस्था को समाप्त करने तथा साम्राज्य के दूरस्थ भागों को केन्द्र के साथ संयुक्त करने के एक साधन के रूप में प्रयुक्त किया।
उसने मुद्रा में सुधार किया। वह पहला तुर्क शासक था जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए । सल्तनत युग के दो महत्वपूर्ण सिक्के चाँदी का टंका और ताँबे का जीतल उसी ने आरम्भ किये।
डॉ० के० ए० निजामी के अनुसार, “ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की रूपरेखा के बारे में सिर्फ दिमागी खाका बनाया था, इल्तुतमिश ने उसे एक व्यक्तित्व, एक पद, एक प्रेरणा शक्ति, एक दिशा, एक शासन व्यवस्था और एक शासक वर्ग प्रदान किया। “
डॉ० ईश्वरी प्रसाद के अनुसार, “इल्तुतमिश निस्सन्देह गुलामवंश का वास्तविक संस्थापक था।”
इल्तुतमिश के शासन का मुख्य आधार विदेशी मुसलमान थे।
उसने अपने उत्तराधिकारी के रूप में ज्येष्ठ पुत्र का चयन करने की सामान्य प्रथा को तोड़ दिया और अपनी पुत्री रजिया को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
किन्तु इल्तुतमिश की मृत्यु के बाद तुर्की अमीरों ने उसके पुत्र रुकनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया।
रुकनुद्दीन के समय में उसकी मां शाहतुर्कान के हांथ में वास्तविक सत्ता थी जो अतिमहत्वाकांक्षी और निर्दयी महिला थी। इसे जन समूह द्वारा अपदस्थ कर रजिया को सुल्तान बनाया गया।
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