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चित्रकला
मुख्यतः तीन प्रकार की चित्रकला—
जादोपटिया चित्रकारी —
- कपड़ा या कागज के छोटे छोटे टुकड़ो को जोड़कर बनाए जाने वाले पट्टियों पर की जाने वाली चित्रकारी |
- मुख्यतः संथाल जनजाति में |
कोहबर चित्रकारी —
- गुफा में विवाहित जोड़ा दिखाने के लिए |
- सिकी देवी का विशेष चित्रण |
- बिरहोर जनजाति में |
सोहराय चित्रकारी —
- सोहराय पर्व से सम्बंधित , दिवाली के एक दिन बाद मनाया जाता है |
- पशुओं को श्रद्धा अर्पित करने का पर्व |
- देवता प्रजाति / पशुपति का विशेष चित्रण |
लोक गीत
कुछ प्रमुख लोक गीत व उसके गाने के अवसर —
इसके अलावा भी बहुत सरे झारखण्ड के लोक गीत है पर 1 नंबर के लिए उतना कौन रट्टा मारता है और भी बहुत सारी चीजे है पढ़ने के लिए लोक गीत के अलावा |
झारखण्ड के नृत्य
छऊ नृत्य
- मुख्यतः सरायकेला , मयूरभंज व पुरुलिया जिले में |
- इस नृत्य का विदेश में सर्वप्रथम प्रदर्शन 1938 में सरायकेला के राजकुमार सुधेन्दु नारायण सिंह ने करवाया था |
- इस नृत्य में पौराणिक व ऐतिहासिक कथाओं के मंचन के लिए पात्र तरह तरह के मुखौटे धारण करते है और बिना संवाद के अभिनय के द्वारा अपने भाव को व्यक्त करते है |
जदुर नृत्य
- यह नृत्य कोलोम सिंग बोंगा पर्व से सरहुल पर्व (फागुन से चैत तक) तक चलता है |यह स्त्री पुरुष का सामूहिक नृत्य है , जिसमे वे धीमी गति से लय ताल में नाचते हैं |
जपी/शिकार नृत्य
- यह नृत्य सरहुल पर्व के बाद आरम्भ होता हैं व आषाढ़ी पर्व तक चलता हैं
करमा / लहुसा नृत्य –
- यह नृत्य असाढ़ से सोहराय तक मनाया जाता हैं |यह एक सामूहिक नृत्य हैं | इसमें 8 पुरुष व 8 स्त्रियां भाग लेती हैं |
कुछ और प्रमुख नृत्य
माघानृत्य — शीत ऋतु में
पाइका नृत्य
जतरा नृत्य – समूहित नृत्य
झारखण्ड के प्रमुख लोक नाट्य
झारखण्डी साहित्य एवं साहित्यकार
झारखण्डी साहित्य को हम तीन भागों में बाँट कर समझने की कोशिश करेंगे —
जनजातीय , सदानी और हिंदी साहित्य —
जनजातीय भाषा
जनजातीय साहित्य में हम निम्न भाषा / बोली के बारे में पढ़ेंगे —
1.संथाली
- यह संथाल जनजाति की भाषा है |
- संथाली अपने भाषा को होड़ रोड़ कहते है |
- इनका अपना व्यकरण है |
- इनकी अपनी लिपि है जिसे ओलचिकी कहते है |इस लिपि का अविष्कार रघुनाथ मुर्मू द्वारा 1941 में किया गया |
- 92 वे संविधान संसोधन के द्वारा संथाली भाषा को 8 वीं अनुसूची में स्थान दिया गया |
संथाली भाषा के प्रमुख रचनाकार है –
- जे फिलिप्स ,इ जी मन्न ,पकसुले, कैम्पबेल , मैकफेल , डोमन साहू समीर , केवल सोरेन |
2.मुण्डारी
- मुण्डा जनजाति की भाषा का नाम मुण्डारी है | मुण्डारी भाषा के चार रूप मिलते है |
- हसद मुण्डारी , तमड़िया मुण्डारी , केर मुण्डारी , नगुरी मुण्डारी |
मुण्डारी साहित्य के प्रमुख रचनाकार
- जे सी व्हिटली , ए नॉट्रोट , एस जे डी स्मेट , फादर हॉफमैन , एस सी रॉय , W J आर्चर ,पी के मित्रा |
हो :
- हो जनजाति की भाषा का नाम ‘हो’ ही है |इस भाषा की अपनी शब्दावली एवं उच्चारण पद्धति है |
‘हो’ साहित्य के प्रमुख रचनाकार
- भीमराव सुलंकी , सी एच बोम्बास , बोस , लियोनल बरो ,w g आर्चर,
कुडुख /उरांव
- उरांव जनजाति की भाषा का नाम कुडुख या उरांव है |इस भाषा का लोक साहित्य बहुत संपन्न है |
प्रमुख रचनाकार
- ओ फ्लैक्स , फड्रिनेंड होन ,ए ग्रीनर्ड |
खड़िया
- खड़िया जनजाति की भाषा का नाम खड़िया है |
- इसकी लिखित साहित्य विकासशील अवस्था में है |
प्रमुख रचनाकार
- गगन चंद्र बनर्जी ,एस सी रॉय ,एच फ्लोर ,w C आर्चर
सदानी भाषा
खोरठा
- इसका सम्बन्ध प्राचीन खरोष्ठी लिपि से जोड़ा जाता है |
- इसके अन्तर्गत रामगढ़िया ,देसवाली ,गोलवारी , खटहि आदि बोलियां आती है |
- राजा – रजवाड़ो , राजकुमार- राजकुमारियां आदि की कथाएं खोरठा भाषा में मिलती है |
प्रमुख रचनाकार
- भुनेश्वर दत्त शर्मा ,श्री निवास पानुरी आदि |
पंचपरगनिया
- पंचपरगना क्षेत्र की प्रचलित भाषा है जिसके अन्तर्गत तमाड़ , बुंडू ,राहे, सोनाहातू एवं सिल्ली आते है |
प्रमुख रचनाकार
- विनोदिया कवी , विनोद सिंह , गोरंगिया , सोबरन कवि , बरजू राम
कुरमाली या करमाली
- मूलतः कुर्मी जाती की भाषा है |
- इस लोक साहित्य समृद्ध है |
- इसका लिखित साहित्य बहुत कम है |
रचनाकार
- जगराम, बुध्धु महतो ,निरंजन महतो
नागपुरी
- यह भाषा सदरी गँवारी के नाम से भी जानी जाती है |
- यह संपर्क भाषा के रूप में पुरे झारखण्ड में प्रचलित है |
- यह नागवंशी राजाओं की मातृभाषा है |
- इसका अपना लिखित साहित्य है |
प्रमुख रचनाकार
- व्हिटली , कोनराड , बुकाउट ,हेनरिक फ्लोर ,रघुनाथ नृपति , महाकवि घासीराम ,हुलास राम ,कंचन आदि
Sulendera Sahu Jan 16, 2020
Very nice