मुंडा विद्रोह
भूमिका – जनजातीय आंदोलनों में सबसे विस्तृत व संगठित बिरसा आंदोलन था. इस आंदोलन का नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया था. इस विद्रोह को उलगुलान भी कहते हैं, जिसका तात्पर्य महाविद्रोह से है. जगीदारों के द्वारा खुंटकुटी के अधिकारों का उल्लंघन , औपनिवेशिक शोषण की नीतियाँ तथा बढती बेगारी इस आंदोलन के मूल कारणों में प्रमुख थे. इस विद्रोह का उद्देश्य आंतरिक शुद्धीकरण, औपनिवेशिक शासकों से मुक्ति व स्वतंत्र मुंडा राज्य की स्थापना करना था.
विश्लेषण – जनजातीय समाज के बीच में खुंटकुटी व्यवस्था मौजूद थी. यह व्यवस्था सामूहिक भू – स्वामित्व पर आधारित कृषि व्यवस्था थी. ब्रिटिश सरकार ने इस व्यवस्था को खत्म कर निजी भू स्वामित्व की व्यवस्था उन पर लागू कर दी. इसके साथ ही राजस्व को बढ़ा दिया गया. यहां की भूमि अनुपजाऊ थी तथा परंपरागत तरीके से कृषि कार्य करने से उपज काफी कम होती थी.जिसके कारण बढ़ी हुई राजस्व दर से लगान देने में अधिकांश कृषक असमर्थ थे. लगान देने किए लिए कृषक साहुकारों और महाजनों से ऋण लेते थे आयर वे इस ऋण जाल में फंसते चले जाते थे . जो कृषक लगान नहीं दे पाते थे उनकी भूमि अंग्रेजी शासकों के द्वारा जब्त कर लिया जाता था. अपनी ही जमीन से बेदखल होने की वजह से जनजातीय समाज में आक्रोश था.
इस शोषण और उत्पीड़न के खिलाफ इस आंदोलन का नेतृत्व बिरसा मुंडा नामक एक जनजातीय नेता ने किया. बिरसा मुंडा का जन्म 18 नवंबर 1875 को उलीहातु में हुआ था.बिरसा ने मुंडा समाज को संगठित किया .उन्होंने मुंडा समाज को परंपरागत रीति रिवाज से मुक्त होकर ईश्वर पर आस्था रखने के लिए प्रेरित किया.उन्होंने नैतिक आचरण की शुद्धता ,आत्म सुधार एवं एकेश्वरवाद का उपदेश दिया. उन्होंने अनेक देवी देवताओं को छोड़कर एक ईश्वर सिंहबोंगा की आराधना का आदेश अपने अनुयायियों को दिया. उन्होंने स्वयं को ईश्वर का प्रतिनिधि घोषित किया और कहा की ईश्वर ने मुंडा को विदेशी दासताओं से मुक्ति एवं एक सभ्य समाज की स्थापना के लिए उन्हें भेजा है.उन्होंने अपने उपदेशों में राजनीतिक अधिकारों की बात की तथा ब्रिटिश सत्ता के अस्तित्व को अस्वीकार करते हुए अपने अनुयायियों को सरकार को लगान नहीं देने का आदेश दिया. बिरसा के उपदेशों से अनेक लोग प्रभावित हुए तथा धीरे धीरे बिरसा आंदोलन का प्रचार-प्रसार पूरे जनजातीय क्षेत्र में हो गया.
विद्रोह की शुरुआत औपनिवेशिक शोषणकारी तत्व ( ईसाई मिशनरियों, साहूकारों, अधिकारियों आदि) पर आक्रमण द्वारा किया गया. इसके उपरांत बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 2 वर्ष की सजा हुई. महारानी विक्टोरिया के हीरक जयंती के अवसर पर 1898 में बिरसा को कैद से मुक्त कर दिया गया .उन्होंने फिर से मुंडा आंदोलन को संगठित करना प्रारंभ किया तथा विदेशी शासन के विरुद संघर्ष के लिए लोगों को तैयार किया.बिरसा के अनुयायियों ने यूरोपीय मिशनरियों पर छापेमारी की. रांची, खूंटी, तमार आदि जगहों पर हिंसक झड़पें हुई. परिणाम स्वरूप सरकार द्वारा आंदोलन के दमन और बिरसा की गिरफ्तारी के लिए तैयारी शुरू कर दी. 3 फरवरी 1900 को बिरसा को पुनः बंदी बना लिया गया. जेल में हैजा की बीमारी से उनकी मृत्यु हो गयी. इसके बाद इस आंदोलन का दमन कर दिया गया.
यद्यपि इस आंदोलन का दमन कर दिया गया परंतु इसके परिणाम सकारात्मक तथा उत्साहवर्धक रहे. इस आंदोलन के उपरांत मुंडा समाज में आंतरिक सुधार की भावना जगी.
परिणाम
निष्कर्ष
इस प्रकार बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हुए मुंडा विद्रोह ने जनजातीय समाज की दशा व दिशा बदल दी और वे अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए. आज भी बिरसा मुंडा को स्थानीय समाज में ईश्वर की तरह पूजा जाता है.
Birsa munda ka janm 15 Nov 1875 ko hua tha
भूमिज विद्रोह 1832-33
Dhanyavaad
बहुत बढ़िया
Great work.
Bahut bahut Dhanyavad aapka Itni Sahaj Saral bhasha mein Uttar ko prastut karne Hetu bahut jyada se main Inko Padwa Yaad kar sakti hoon
again thank you so much
Raghunath munda Feb 18, 2021
Birsa Munda ka janm 15 Nov 1875